Thursday, 27 March 2014

सांसद भवन, “यात्रा दिल्ली की”



सांसद भवन, यात्रा दिल्ली की
 
इस बात को मैं बार-बार दुहरा चुकी हूँ कि यात्रा और पर्यटन मेरे व्यक्तित्व की समग्रता का सबसे बड़ा हिस्सा बन चूका है | बहुत सारी जगहों की यात्रायें मैंने योजना बद्ध तरीके से एक पर्यटक अथवा तीर्थ यात्री के तौर पर की हैं, लेकिन इसी क्रम में ऐसी यात्राओं की भी संख्या कम नहीं है, जिनका मुख्य उद्देश्य कुछ और रहा है, फिर भी मेरा घुम्मकड़ और यायावर मन उसमें अपने लिए पर्यटन के अवसर तलाश लिया करता था | प्रसंग मेरी दिल्ली यात्रा का है, यह यात्रा भी आयोजित तथा संयोजित नहीं थी, बल्कि संयोगिक थी | अर्थात जाना किसी और मतलब से हुआ था, लेकिन मैंने उस मतलब को अपने मन के चटक रंग में रंग लिया |

यह सुयोग मुझे 2005 के मई महीने में हुआ | मेरे एक नजदीकी रिश्तेदार की लड़की का विवाह 11 मई को दिल्ली में होने वाला था और उसमें मुझको सपरिवार शामिल होने का निमंत्रण मिला था | यूँ दिल्ली मेरे लिए अपरिचित नहीं थी, औपचारिक रूप से वहाँ मेरा आना-जाना कई बार हुआ था और इस क्रम में मैं ऐसे बहुत से सुन्दर और दर्शनीय स्थलों से परिचित हुई थी, लेकिन मैंने एक पर्यटन की दृष्टि से उन्हें कभी नहीं देखा था | मैंने कई वर्षों तक देश-विदेश के बहुत से तीर्थ एवं पर्यटन स्थलों का भ्रमण किया था, लेकिन दिल्ली जिसे इस देश की राजधानी होनें का गौरव प्राप्त है, अभी तक मेरे पर्यटक-मन की चिर-बमुक्षित भूख को शांत नहीं कर सकी थी | निमंत्रण प्राप्त करने के बाद इस भूख की अगन मेरे मन- प्राण को विदग्ध करने लगी, तब मैंने यह फैसला किया कि इस बार मैं अवश्य अवसर तलाश करुँगी और दिल्ली भी देखूँगी तथा दिल्ली का दिल भी देखूँगी |

सही अर्थों में दिल्ली एक थ्रिव है, रोमांच है | दिल्ली का दिल धड़कता है, तो सारे देश का दिल धड़कता है | दिल्ली जागती है तो सारा देश जागता है और दिल्ली सो जाती है तो सारा देश सो जाता है | यह सच्चाई झुठलाई नहीं जा सकती कि इस देश के इतिहास का बहुत बड़ा कालखंड अकेले दिल्ली के नाम दर्ज किया जा सकता है | अपने इतिहास में झंझावतों की जितनी विभीषिकायें अकेले दिल्ली ने झेली है, दुनिया के किसी भी नगर अथवा राजधानी को कभी इतना झेलना नहीं पड़ा है | बावजूद इसके दिल्ली की जिजीविषा और प्राण-चेतना को दुर्दसनीय ही स्वीकार करना होगा, क्योंकि दिल्ली हमेशा ‘फिनिक्स’ पक्षी की तरह अपनी राख से पुनर्जीवित होती रही है | इस क्रम में दिल्ली कितनी बार बसी है और कितनी बार उजड़ी है, इसका सिलसिलेवार गणना करना बहुत कठिन है |

महाभारत काल में इंद्रप्रस्थ के रूप में अपनी स्थापना के बाद एक लंबे अरसे तक दिल्ली ने अपने को इतिहास के पृष्ठों से अलग ही रखा | इस दृष्टि से यह एक सर्वस्वीकृत तथ्य है कि इसे अपनी राजधानी के रूप में विकसीत और संवर्धित करने का कार्य भगवान श्रीकृष्ण की देख-रेख में पांडवों ने ही किया था | महाभारत’ में इंद्रप्रस्थ (प्राचीन दिल्ली) का जो वर्णन मिलता है, उससे यह सिद्ध होता है कि पांडवों की इस राजधानी से ऐश्वर्यशाली नगर अथवा राजधानी पूरे आर्यावत्त में नहीं थी | महाभारत काल के बाद इसे पहली बार पुनर्निर्मित होने तथा सजने-संवारने का संयोग बारहवीं शताब्दी के प्रारम्भ काल में तब प्राप्त हुआ, जब अजमेर के चौहान वंशी राजा पृथ्वीराज चौहान ने इसे अपनी राजधानी बनाया | बहुत अधिक समय नहीं बीता था कि मुसलिम आक्रमण कारी मुहम्मद गोरी ने दिल्ली पृथ्वीराज से छीन ली और अपने गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक को उसने इसकी गद्दी पर आसीन कर दिया | दिल्ली इसके बाद 1857 तक इन्हीं मुसलिम शासकों के आधीन रही | गुलाम वंश के अलावा खिलजी, लोदी और मुग़ल शासकों की कब्जेदारी दिल्ली पर रही | यदा-कदा कुछ शासकों, खासकर मुग़ल शासकों ने दिल्ली के बजाय आगरा को राजधानी बनाने का प्रयास किया, लेकिन दिल्ली हमेशा से पूरे देश के केंद्र में रही और उसका यह रुतबा आज भी बदस्तूर बना हुआ है | ईस्ट इण्डिया कंपनी के मार्फत अंग्रेजों की हुकूमत जब देश पर कायम हुई तो उन्होंने राजधानी के रूप में औद्योगिक नगर कोलकाता का विकास किया | मगर 1911 में पुन: एक बार उन्हें दिल्ली को ही अपनी राजधानी बनानी पड़ी | 1947 में देश अंग्रेजी-शासन से आजाद हुआ, उसके बाद से अब तक देश की राजधानी दिल्ली ही बनी हुई है |

इसी इतिहास खंड में दिल्ली कई बर्बर आक्रमण कारी लुटेरों, जिनमें चंगेज खां, तैमूर लंग, अहमद शाह अब्दाली तथा नदीरशाह दुर्रानी का नाम प्रमुख है, के द्वारा पूरी तरह रोंदी और तबाह की गई | ये लुटेरे धन-संपत्ति तो लुटते ही थे, कत्ले आम करते हुए बस्तियों को भी आग के हवाले कर देते थे | तब ऐसा लगता था कि वीरानियत फिर कभी गुलज़ार नहीं हो सकेगी, लेकिन दिल्ली फिर सज-संवरकर अपने को पूर्व स्थिति में लौटा ले आती | आज वही दिल्ली देश के सर्वाधिक आबादी वाले शहरों में अपना तीसरा स्थान रखती है | इस तरह दिल्ली इतिहास की एक ओर अगर पुरातात्विक पहचान है तो दूसरी ओर सिर्फ अपनी ही नहीं, पूरे भारत के वर्त्तमान का दर्पण भी है और इस देश का भविष्य भी इसी के गलियारे से गुजर कर अपने लिए रास्ता तलाश कर रहा है |

दिल्ली यमुना नदी के किनारे बसी है | इसकी ऊँचाई समुद्रतल से 239 मीटर है और इसका क्षेत्रफल 1483 वर्ग किलोमीटर है | इस विकास क्षेत्र में आधुनिक दिल्ली का विस्तार पूर्व के 6 शहरों का एक समुच्चय माना जाता है | जिसमें क्रमश: आठवीं शताब्दी का ‘लालकोट’, चौदहवीं का ‘सीरी’, ‘तुग़लकाबाद’, ‘जहाँपनाह’ और ‘फिरोजशाह कोटला’हैं | सोलहवीं शताब्दी का ‘लोदी गुंबद’ है | वैसे मौजूदा समय में दिल्ली की पहचान सिर्फ दो विभागों पुरानी दिल्ली और नई दिल्ली के तौर पर की जाती है | यूँ दिल्ली देश की सिर्फ राजनीतिक राजधानी नहीं है, यह वैश्विक स्तर पर एक बहुत बड़ा व्यापारिक केंद्र भी माना जाता है | दिल्ली में पुरातत्व और इतिहास को प्रतिबिंबित करने वाले बहुत सारे स्थापत्य मौजूद है, जहाँ भारत में रूचि रखने वाले देशी-विदेशी पर्यटकों की हमेशा बड़ी संख्या में आमद बनी रहती है | यहाँ धार्मिक महत्त्व के मंदिर, मस्जिद, स्मारक, मकबरे और अन्य स्थापत्य भी बड़ी संख्या में हैं | इसके अलावा अंग्रेजों के शासन-काल तथा स्वतंत्रता के बाद निर्मित हुए बहुत सारे दर्शनीय संस्थान हैं | यही कारण है कि पर्यटन की दृष्टि से दिल्ली में विदेशी पर्यटकों का आगमन अन्य शहरों के मुकाबले सर्वाधिक होता है | देश की राजधानी होने के कारण यहाँ देश के सभी प्रांतों के लोगों की आमद होती रहती है तथा उनकी अपनी-अपनी बस्तियाँ भी हैं | आवागमन के साधन भी यहाँ प्रचूर मात्रा में हैं | लगभग सभी प्रांतों के मुख्य शहरों और राजधानियों के लिए यहाँ रेल सेवा और हवाई-यात्रा के संसाधन प्रचूर मात्रा में उपलब्ध है |

वैसे पुरानी दिल्ली और नई दिल्ली की बनावट तथा स्वरूप में स्पष्ट अंतर दृष्टिगोचर होता है | पुरानी दिल्ली का मुख्य बाजार चाँदनी चौक दुनिया के बेहतरीन बाजारों में गिना जाता है | इसका एक सिरा अगर फतेहपुरी मस्जिद से जुड़ा है तो दूसरा सिरा प्रसिद्ध लाल किले से | जामा मस्जिद और शीशगंज गुरुद्वारा भी इसी इलाके में हैं | यहाँ के सारे उच्चकोटि के दर्शनीय संस्थान मुसलिम-काल के हैं | अत: उनका शिल्प-स्थापत्य उस काल की वास्तु-कला की झाँकी प्रस्तुत करता है | वहीँ नई दिल्ली का इलाका ब्रिटिश शासन-काल की निर्मिती होने के कारण पाश्चात्य शैली की झलक प्रदर्शित करता है | नई दिल्ली को आबाद कराने और उसे एक गौरवशाली राजधानी के रूप में विकसित करने के लिए अंग्रेजों ने इसका नक्शा अपने समय के विश्व-विख्यात वास्तु-शास्त्री ‘एडविन लुटियन’ से तैयार करवाया था | संसद भवन, राष्ट्रपति भवन, इण्डिया गेट कनाट प्लेस जैसे बहुत सारे आधुनिक संस्थान इसी नक़्शे के आधार पर तैयार किये गये थे | अब दिल्ली का बाहरी इलाका विभिन्न औद्योगिक संस्थानों के विकास के साथ बहुत दूर तक प्रसारित हो गया है | इसके अलावा इसकी आबादी भी बढ़ती जा रही है |

जिस विवाह में हमें शामिल होना था, वह 11 मई को होने वाला था | हमारा पूरा जत्था 9 मई को हैदराबाद से दिल्ली के लिए हवाई जहाज से रवाना हो गया | दिल्ली पहुँचने में सिर्फ दो घंटे का समय लगा | पालम हवाई अड्डे पर हमारी अगवानी में जो लोग आये उन्होंने हमारे ठहरने की जगह तक पहुँचाया, वहाँ भोजन इत्यादि करने के बाद मैंने दिल्ली घूमने की अपनी योजना अपने साथ आये लोगों के सामने रखी | उनमें से कुछ लोग मेरे साथ चलने के लिए तैयार हुए | हमने घूमने के लिए निमित्त एक किराये की कार बुक करा ली और एक गाइड भी | सबसे पहले संसद भवन और उसके आस-पास के दर्शनीय स्थलों को देखने का मन बनाया |

संसद भवन देखने की जिज्ञासा ने मेरे सहित सभी रिश्तेदारों के मन में इसके सुषमा-सौन्दर्य के अवलोकन की एक उत्फुल्ल कामना जगा दी | कार ने रफ्तार पकड़ी और उसके साथ ही गाइड ने संसद भवन का महिमा-गान शुरू कर दिया  | संसद भवन का नक्शा ब्रिटिश के विश्व-विख्यात वास्तु-शास्त्री ‘एडविन लुटियन’ और ‘हेरबर्ट बेकर’ ने सन् 1912-1913  में तैयार किया था | संसद भवन का निर्माण सन् 1921-1927 के दौरान किया गया था । यह भवन जब बनकर तैयार हुआ था, तो इसका उद्घाटन तत्कालीन वायसराय ‘लार्ड इरविन’ ने 18 जनवरी 1927 में किया था |

संसद भवन 171 मी. की परिधि में बनी नयी दिल्‍ली की बहुत ही शानदार इमारतों में से एक है । यह इमारत पाश्चात्य शिल्प का एक उत्कृष्ठ नमूना है। इसकी तुलना विश्व के सर्वोत्तम विधान-भवनों के साथ की जा सकती है। इसका नक्शा चक्राकार बनाया गया है । जिसका व्यास 560 फीट तथा जिसका घेरा 533 मीटर है । यह लगभग छ: एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है। भवन के 12 दरवाजे हैं, जिनमें से 5 के सामने द्वार मंडप बने हुए हैं । पहली मंजिल पर खुला बरामदा हल्के पीले रंग के 144 चित्ताकर्षक खंभों की कतार से सुसज्‍जित हैं। जिनकी प्रत्येक की ऊँचाई 27 फीट है | भले ही इसका डिजाइन विदेशी वास्‍तुकारों ने बनाया था । किंतु इस भवन का निर्माण भारतीय सामग्री से तथा भारतीय श्रमिकों द्वारा किया गया था । तभी इसकी वास्‍तुकला पर भारतीय परंपराओं की गहरी छाप है ।

गाइड ने आगे बताया कि इस भवन का केंद्र बिंदु केंद्रीय कक्ष (सेंट्रल हाल) का विशाल चक्राकार ढांचा है। केंद्रीय कक्ष के गुबंद का व्यास 98 फीट तथा इसकी ऊँचाई 118 फीट है, जो एक सीध में तैयार किये गये खंभों पर टिके विशाल गुंबद की बहुत सुन्दर झांकी प्रस्तुत करता है | । विश्वास किया जाता है कि यह विश्व के बहुत शानदार गुबंदों में से एक है। भारत की संविधान सभा की बैठक (1946-49) इसी कक्ष में हुई थी 1947 में अंग्रेजों से भारतीयों के हाथों में सत्ता का ऐतिहासिक हस्तांतरण भी इसी कक्ष में हुआ था । इस कक्ष का प्रयोग अब दोनों सदनों की संयुक्क्त बैठक के लिए तथा राष्‍ट्रपति और विशिष्‍ट अतिथियों-राज्‍य या शासनाध्‍यक्ष आदि के अभिभाषण के लिए किया जाता है । कक्ष राष्‍ट्रीय नेताओं के चित्रों से सज़ा हुआ है। केंद्रीय कक्ष के तीन ओर लोक सभा, राज्‍य सभा और ग्रंथालय के तीन कक्ष हैं । उनके बीच सुंदर बग़ीचा है जिसमें घनी हरी घास के लॉन तथा फव्‍वारे हैं। इन तीनों कक्षों के चारों ओर एक चार मंजिला चक्राकार इमारत बनी हुई है । इसमें मंत्रियों, संसदीय समितियों के सभापतियों और पार्टी के कार्यालय हैं । लोक सभा तथा राज्‍य सभा सचिवालयों के महत्‍वपूर्ण कार्यालय और संसदीय कार्य मंत्रालय के कार्यालय भी यहीं हैं ।

गाइड ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा कि पहली मंजिल पर चार समिति कक्षों का प्रयोग संसदीय समितियों की बैठकों के लिए किया जाता है । इसी मंजिल पर तीन अन्‍य कक्षों का प्रयोग संवाददाताओं द्वारा किया जाता है । संसद भवन के भूमि-तल पर गलियारे की बाहरी दीवार को अनेक भित्ति-चित्रों से सजाया गया है । जिनमें प्राचीन काल से भारत के इतिहास तथा पड़ोसी देशों के साथ भारत के सांस्‍कृतिक संबंधों को प्रदर्शित किया गया है । लोक सभा कक्ष में, आधुनिक ध्‍वनि व्‍यवस्‍था है। दीर्घाओं में छोटे छोटे लाउडस्‍पीकर लगे हुए हैं । सदस्‍य माईक्रोफोन के पास आए बिना ही अपनी सीटों से बोल सकते हैं । लोक सभा कक्ष में स्‍वचालितमत-अभिलेखन उपकरण लगाए गए हैं, जिनके द्वारा सदस्‍य मत विभाजन होने की स्‍थिति में शीघ्रता के साथ अपने मत अभिलिखित कर सकते हैं । राज्‍य सभा कक्ष लोक सभा कक्ष की भांति ही है । यह आकार में छोटा है । इसमें 250 सदस्‍यों के बैठने के लिए स्‍थान हैं । गाइड ने कहा कि केंद्रीय कक्ष के दरवाजे के ऊपर हमें पंचतंत्र से संस्‍कृत का एक पद्यांश देखने को मिलता है । जिसका अर्थ है, “यह मेरा है तथा वह पराया है, इस तरह की धारणा संकीर्ण मन वालों की होती है । किंतु विशाल हृदय वालों के लिए सारा विश्‍व ही उनका कुटुंब होता है।

गाइड ने आगे कहा कि स्‍वागत कार्यालय 1975 में निर्मित एक चक्राकार इमारत है । यह आकार में अधिक बड़ी नहीं है । यह बड़ी संख्‍या में आने वाले मुलाकातियों/दर्शकों के लिए, जो सदस्‍यों, मंत्रियों आदि से मिलने के लिए या संसद की कार्यवाही को देखने के लिए आते हैं, एक मैत्रीपूर्ण प्रतीक्षा स्‍थल है । इमारत, पूरी तरह से वातानुकूलित है ।

आगे बात जारी रखते हुए कहा कि संसदीय सौधा की इमारत 9.8 एकड़ भूखंड पर बनी हुई है । इसका फर्शी क्षेत्रफल 35,000 वर्ग मीटर है । इसका निर्माण 1970-75 के दौरान हुआ । आगे तथा पीछे के ब्‍लाक तीन मंजिला तथा बीच का ब्‍लाक 6 मंजिला है । नीचे की मंजिल पर जलाशय जिसके ऊपर झूलता हुआ जीना बना हुआ है । भूमितल एक अत्‍याधुनिक स्‍थान है । यहां राष्‍ट्रीय तथा अंतर्राष्‍ट्रीय सम्‍मेलन होते हैं । एक वर्गाकार प्रांगण के चारों ओर एक मुख्‍य समिति कक्ष तथा चार लघु समिति कक्षों का समूह है । इस प्रांगण के बीच में एक अष्‍टकोणीय जलाशय है । प्रांगण में ऊपर की ओर पच्‍चीकारी युक्त जाली का पर्दा है । वहाँ पौधे लगाकर एक प्राकृतिक दृश्‍य तैयार किया  गया है । इसमें पत्‍थर की टुकड़ियों तथा छोटे पत्‍थरों के खंड बनाए गए हैं । पाँचों के पाँचों समिति कक्षों में संसद भवन में लोक सभा तथा राज्‍य सभा कक्षों की भांति साथ साथ भाषांतर की व्‍यवस्‍था है । प्रत्‍येक कक्ष के साथ संसदीय समितियों के सभापतियों के कार्यालयों के लिए एक कमरा है ।

गाइड ने एक ख़ास बात बताते हुए कहा कि अधिवेशन के बीच की अवधियों में पर्यटकों, छात्रों और रूचि रखने वाले अन्‍य व्‍यक्‍तियों को तय समय के दौरान संसद की इमारतें घुमाने की व्‍यवस्‍था है । दर्शकों के साथ स्‍टाफ का एक सदस्‍य जाता है । जो उनको इमारतों के बारे में बताता है । दर्शक हर आधे घंटे बाद मोटे तौर पर 40-50 व्‍यक्‍तियों के सुविधाजनक समूहों में स्‍वागत कक्ष से भ्रमण के लिए प्रस्‍थान करते हैं । छात्रों तथा संसदीय संस्‍थाओं के कार्यकरण के बारे में जानकारी प्राप्‍त करने में विशेष रूप से रूचि रखने वाले अन्‍य लोगों के समूहों के लिए विशेष भ्रमण की व्‍यवस्‍था भी की जाती है। ऐसी स्‍थतियों में, संसदीय अध्‍ययन तथा प्रशिक्षण केंद्र भ्रमण शुरू करने से पहले दर्शकों को संक्षिप्‍त परिचय देने की व्‍यवस्‍था करता है । पिछले दस वर्षों के दौरान हर वर्ष संसद भवन की इमारतों को देखने के लिए आने वाले दर्शकों की कुल संख्‍या 3,000 से लगभग 90,000 के बीच रही है । गाइड के इस वार्ता-क्रम में कार अपनी रफ्तार से आगे बढ़ती जा रही थी | मैं उसकी बातें  भी सुन रही थी और खिड़की  से भागती सुन्दर दृश्यावलियों का अवलोकन  भी कर रही थी | इन गुजरते-भागते दृश्यों में समतल-विस्तार के साथ ही  दिल्ली की मनमोहक  हरीतिमा भी शामिल थी | हमारी कार संसद भवन के सामने रुकी | गाइड से इतना सुन्दर वर्णन सुनकर हमारी बहुत इच्छा थी कि हम शानदार इमारत, जिसे भारत का गौरव समझा जाता है, की झांकी भीतर जाकर देख सकें, लेकिन ऐसा संभव नहीं था क्योंकि बिना किसी सांसद के अनुमोदन के प्रवेश-पत्र हासिल नहीं होता | बाहर की कुछ तस्वीरें मन मार कर हमें राष्ट्रपति भवन की ओर प्रयाण करना पड़ा |

संपत देवी मुराराका
लेखिका यात्रा विवरण
मीडिया प्रभारी
हैदराबाद

कोणार्क, भुवनेश्वर, नंदन-कानन ज्युलोजिकल पार्क, उदयगिरी, धौलागिरी बौद्ध मंदिर ता.11-3-2014













































कोणार्क, भुवनेश्वर, नंदन-कानन ज्युलोजिकल पार्क, उदयगिरी, धौलागिरी बौद्ध मंदिर ता.11-3-2014 

संपत देवी मुराराका
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जगन्नाथपुरी में भागवत 10-3-2014





                                 

                                

                               



जगन्नाथपुरी में भागवत 10-3-2014
संपत देवी मुराराका
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मीडिया प्रभारी
हैदराबाद

जगन्नाथपुरी में भागवत ता.9-3-2014









जगन्नाथपुरी में भागवत ता.9-3-2014 
संपत देवी मुराराका
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मीडिया प्रभारी
हैदराबाद

जगन्नाथपुरी में भागवत ता. 8-3-2014


                                 



                                 

                                



जगन्नाथपुरी में भागवत ता. 8-3-2014 

संपत देवी मुराराका
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मीडिया प्रभारी
हैदराबाद

जगन्नाथपुरी में भागवत ता.7-3-2014





                               

जगन्नाथपुरी में भागवत ता.7-3-2014 

संपत देवी मुराराका
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मीडिया प्रभारी
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जगन्नाथपुरी में भागवत ता..6-3-2014







                                 



                                 

                                   

                                

                               

                               

                                  

जगन्नाथपुरी में भागवत ता..6-3-2014 

संपत देवी मुराराका
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मीडिया प्रभारी
हैदराबाद