Wednesday, 21 August 2013

हावड़ा ब्रिज-(कोलकाता)


हावड़ा ब्रिज-(कोलकाता)

कोलकाता पश्चिम बंगाल राज्य की राजधानी है | मुंबई को इस देश का व्यापारिक महानगर मान जायेगा, तो उसी के समानांतर कोलकाता को देश का औद्योगिक महानगर स्वीकार करने में किसी को कोई हिचक नहीं होगी | कई सदियों पहले इस महानगर को ईस्ट इण्डिया कंपनी के अंग्रेजों ने पूर्वी एशिया से व्यापार करने के लिए विकसित किया था | विकास के इसी क्रम में यह महानगर देश के एक प्रमुख औद्योगिक केन्द्र के रूप में भी विकसित होता गया | परिणाम स्वरूप यहाँ के मूल वाशिन्दों बंगालियों के अलावा भी देश के अन्य प्रांतों के लिए भी अपनी रोजी-रोटी के तलाश में आकर बसते गये | आज कोलकाता अपने दामन में न सिर्फ स्थानीय बंगाली संस्कृति को ही समेटे हुए है अपितु वह देश की लगभग सभी संस्कृतियों की झाँकी प्रस्तुत करता है | मुंबई की तरह यह भले ही समुद्र के किनारे न बसा हो लेकिन देश की पवित्रतम नदी गंगा जो यहाँ तक पहुँचते-पहुँचते हुगली और भागीरथी का नाम धारण कर लेती है, मनोरम और सुन्दर दिखाई देती है |

ब्रिटिश काल का बसाया गया यह नगर अपनी स्थापना और स्थापत्य में अभूतपूर्व है | इस काल में यहाँ सुन्दर महलों और उपासना गृहों के अलावा अनेक भव्य तथा आकर्षक पार्कों का भी निर्माण किया गया था | सुविस्तारित मैदान तो यहाँ है ही, विक्टोरिया टर्मिनल के अलावा इडेन गार्डेन भी है, जिसे देखकर स्वर्गिक आनन्द की अनुभूति होती है | कोलकाता का क्षेत्रफल 88.752 वर्ग किलोमीटर है | इसके कोलकाता नामकरण के विषय में लोगों की अलग-अलग राय है लेकिन यह सही नहीं मानते हैं कि इसकी ऐतिहासिकता का बहुत संक्षिप्त काल भी देश के इतिहास को एक नये आयाम पर खड़ा करता है | इसकी पौराणिकता की गवाही देने के लिए काली घाट में स्थित माँ काली का अति प्राचीन मंदिर ही पर्याप्त है, जिसकी गणना देश के 51 शक्ति पीठों में की जाती है | विश्वविश्रुत संत स्वामी विवेकनन्द और उनके गुरु स्वामी रामकृष्ण परमहंस का नाम भी कोलकाता से जुडता है | अलावा इसके विश्व कवि रविन्द्रनाथ टैगोर और उनके द्वारा स्थापित शान्ति निकेतन भी इस नगर को विश्व पटल पर महिमावान बनाने के लिए पर्याप्त है | स्वतंत्रता की अलख जगाने में इस धरती के क्रांतिकारी वीरों ने जिस इतिहास की रचना की है, उस आने वाली कई सदियों तक यह देश गर्व करता रहेगा | आजाद हिन्द फौज के संस्थापक नेता जी सुभाषचंद बोस और प्रमुख क्रांतिकारी रास बिहारी बोस के भी तार यहीं से जुड़े हैं | भारत रत्न से सम्मानित सत्यजीत राय के अलावा विश्व के प्रमुख अर्थशास्त्री के. अमर्त्य सेन की धरती भी कोलकाता ही है | कहने का मतलब यह कि कला, साहित्य, दर्शन औरविज्ञान के साथ ही इस नगर ने प्रमुख राजनीतिज्ञों तथा समाज सुधारकों को भी जन्म दिया है | अत: कोलकाता महानगर की महिमा तथा गौरवगाथा को किसी एक पक्ष तक सीमित नहीं किया जा सकता, इसका विकास इसके स्थापना काल से बहुमुखी और सर्वांगीण रहा है |

कोलकाता की एक सच्चाई यह भी है कि इसको नये कलेवर में गढ़ने का काम भले ही अंग्रेजों ने किया है, लेकिन इसको सजाने-संवारने में बंगला भाषियों के बाद अगर किसी एक समाज का योगदान सर्वाधिक हो, तो वह समाज यहाँ का मारवाड़ी समाज है | राजस्थान से आकर बसने वाले मारवाड़ी समाज ने न सिर्फ अपने को इस धरती की सस्कृति में ढाल लिया है अपितु अपनी पहचान को भी बनाये रखा है | इस समाज की उपस्थिति और कोलकाता महानगर में उनका योगदान तब से है जब से अंग्रेजों ने इस महानगर को एक प्रमुख महानगर के रूप में गढ़ना शुरू किया था | इस नगर के उद्योग-व्यापार पर आज मारवाड़ी समाज पूरी तरह हावी है | इसके अलावा यहाँ की सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक गतिविधियों पर भी इस समाज का प्रभाव सर्वाधिक है | पूरे देश और दुनिया में दूर-दूर तक फैले मारवाड़ी समाज का लगाव इस महानगर से लगातार बना हुआ है | इस समाज का व्यक्ति अगर एक ओर अपने पूर्वजों की जन्मस्थली राजस्थान जाने को वरीयता देता है, तो दूसरी ओर वह कोलकाता भी इस कारण जाना चाहता है, क्योंकि उसके अनगिनत संबंधी इस नगर में रहते हैं |

कोलकाता सदैव से मेरे आकर्षण का केन्द्र रहा है और मैं कई बार यहाँ आई गई हूँ, लेकिन सही अर्थों में मेरे घुमक्कड़ और यायावर मन ने कभी इस नगर की आत्मा के अंतराल में झाँक कर नहीं देखा | कहने को तो यहाँ की धर्मशालायें और होटेल हमेशा मुझे लुभाते रहे हैं और मैं किसी रिश्तेदार के यहाँ रुकने की अपेक्षा हमेशा इनको ही वरीयता देती रही हूँ | कोलकाता की बीच सड़कों पर चलने वाली ट्राम गाड़ियों ने मुझे हमेशा ललचाया है और मैं किसी टैक्सी के बजाय ट्राम से यात्रा करने में बहुत आनंदित होती रही हूँ | यूँ कि फुटकर-फुटकर मैंने इस नगर में बहुत कुछ देखा,लेकिन वह देखना किसी पर्यटक का देखना कभी नहीं रहा ऐसा सुयोग मुझे सन् 2005 की जुलाई में प्राप्त हुआ | मेरे देवर अशोक मुरारका के बेटे विजय का विवाह कोलकाता में 15 जुलाई को निश्चित हुआ था | इस यात्रा का एक आकर्षण यह भी था कि अलग-अलग शहरों से बहुत से रिश्तेदारों से एक साथ मुलाक़ात संभव हो जाएगी | दूसरा आकर्षण यह था कि अगर कुछ अतिरिक्त समय मिला तो मैं इस शहर अथवा उसके आस पास  के दर्शनीय ऐतिहासिक और धार्मिक स्थानों का अवलोकन अवश्य करुँगी |

इस क्रम में हैदराबाद से मैं तेरह जुलाई को कोलकाता पहुँची | वहाँ हावड़ा रेलवे स्टेशन के पास सोहनदीप महिला मंडल में हम सभी के ठहरने की व्यवस्था की गई थी | हमारा आवास हावड़ा ब्रिज के बगल में था | ब्रिटिश कालीन यह स्थापत्य अपने आप में बेजोड़ है और इंजिनियरिंग का एक ऐसा आदर्श नमूना है जिसे देखकर आज भी लोग हैरत से खड़े रह जाते हैं | कोलकाता शहर इसी ब्रिज के माध्यम से हावड़ा रेलवे स्टेशन से जुडता है | यहाँ भागीरथी का पाट बहुत चौड़ा है और पूरा का पूरा ब्रिज दोनों तरफ से सिर्फ दो-दो खम्भों पर टिका हुआ है | यह संभवत: दुनिया का एक मात्र ब्रिज है जिस पर रात-दिन अनवर आवागमन चालू रहता है | एक साथ कई-कई हजार लोग इस ब्रिज से हो कर आते-जाते देखे जा सकते हैं और बस, ट्राम, टैक्सी तथा अन्य दो पहिया और चार पहिया वाहन लगातार आर-पार होते रहते हैं | हैरत इस बात पर होती है कि सिर्फ दो-दो खम्भों पर टिका यह ब्रिज किस तरह इतना भार ढो पाने में सक्षम होता है | हाँ, इतना अवश्य है कि चलने वालों को इसका मजा किसे झूले जैसा अवश्य महसूस होता है |

बताया जाता है कि इसका निर्माण सन् 1914 में अंग्रेज सरकार ने कराया था | आजादी के बाद हालाँकि इस ब्रिज का निर्माण प्रांतीय सरकार ने विश्वकवि रविन्द्र नाथ टैगोर के नाम पर रविन्द्र सेतु कर दिया, लेकिन इने-गिने लोग ही इसे इस नाम से पुकारते हैं | आम जन आज भी इसे हावड़ा ब्रिज कहकर ही पुकारते हैं | इसकी लंबाई 1500 फिट है और चौड़ाई 71 है और यह दोनों तरफ सिर्फ 4 खम्भों पर टिका है | इसके बारे में एक आश्चर्य जनक बात लोगों ने यह बताई कि गर्मी के दिनों में यह पुल 4 फिट बढ़ जाता है और पुन: रात में यह अपनी स्वाभाविक स्थिति में आ जाता है | सही अर्थो में यह पुल आधुनिक विज्ञान का एक विस्मयकारी चमत्कार है | मैं लगभग पूरी शाम इस पुल का अवलोकन करती रही | इस पुल से गुजरते हुए मानव-समुद्र और शोर मचाते वाहनों का अवलोकन करना जितना सुखद समझ में आ रहा था, उतना ही सुखद पुल के नीचे शांत भाव से बहती भागीरथी का अवलोकन करना भी लगता था | वहाँ भी आते-जाते स्टीमर और भागीरथी पर तैरती नौकाओं को अपलक निहारते रहना, खासकर उस समय जब सूर्य भगवान अस्ताचलगामी हों और उनका लाल बिम्ब भागीरथी की धारा में अपनी लालिमा के साथ अठखेलियाँ कर रहा हो, सचमुच मन के लिए एक विस्मयकारी तथा सुखद अनुभूति थी | धीरे-धीरे वातावरण में धुंधलका छाने लगा और दूर-दूर तक बिजली-बत्तियों का प्रकाश आलोकित होने लगा तो मुझे वापस आवास पर लौट चलने का आभास हुआ | इस आभास के साथ ही में अपने आस-पास को निहारती लौट आई | वह रात नाते-रिश्तेदारों से कुशल-क्षेम पूछते बीत गई |
संपत देवी मुरारका
लेखिका यात्रा विवरण
मीडिया प्रभारी
हैदराबाद


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