Sunday, 30 August 2015

अमरनाथ यात्रा - "जम्मू"

बाहु किले के समक्ष संपत देवी मुरारका 
बागे-ए-बाहु उद्यान में पुत्र राजेश के साथ संपत देवी मुरारका 
शिवधाम मंदिर, चिनाब नदी की एक नहर के तट पर पुत्र राजेश के साथ लेखिका 
शिवधाम मंदिर में विशाल शिवलिंग, जिसे घेरे हुए 12 छोटे-छोटे शिवलिंग के पास लेखिका 
शिवधाम मंदिर के परिसर में कदम्ब के वृक्ष के पास लेखिका  
अमरनाथ यात्रा
जम्मू  
उत्तर भारत की कई यात्रायें मैं कर चुकी थी, लेकिन पवित्र अमरनाथ गुफा में स्थित शिवलिंग, जिसे एक मात्र स्वयंभू और प्राकृतिक होने का गौरव प्राप्त है, का दर्शन अभी मेरे भाग्य से काफी दूर था | मैंने कई बार कार्यक्रम बनाया लेकिन हर बार किसी न किसी विघ्न-बाधा के बीच में आ जाने के कारण मैं वंचित रह गई, लेकिन इस बार जुलाई का महीना करीब आते ही मेरा मन बर्फानी बाबा के दर्शन के लिए बैचेन हो उठा | यहाँ यह बता देना आवश्यक है कि हिमालय पर्वत श्रृंखला की एक गुफा में प्रतिवर्ष एक हिम-पीठिका पर ठोस बर्फ से निर्मित एक शिवलिंग का अभ्युदय प्रतिवर्ष ग्रीष्म ऋतु के पश्चात और वर्षा ऋतु के प्रारंभ में होता है | इस प्राकृतिक लिंग का दर्शन करने देश और विदेश से लाखों श्रद्धालुओं का जत्था इस अवसर पर बड़ी कष्टप्रद और अत्यंत दुर्गम यात्रा कर बाबा के दरबार तक पहुँचता है तथा दर्शनोंपरांत अपने जीवन को धन्य मानता है |

मुझे इस बार ऐसा प्रतीत होने लगा था कि जैसे बाबा मेरी अंत: प्रेरणा बनकर मुझे अपने दरबार में उपस्थित होने को उत्प्रेरित कर रहे हैं | वैसे इस बार भी कई विघ्न-बाधायें मेरी इस मनोवांछित यात्रा के मार्ग में रोड़ा अटकाने का भरपूर प्रयास कर रही थी, लेकिन मैंने अपने मन को दृढ बना लिया था और मेरी इच्छा अब सही अर्थों में एक कठोर और निश्चयात्मक संकल्प का रूप धारण कर चुकी थी | एक अखबार में मैंने पवित्र गुफा में अद्भुत होने वाले हिम-शिवलिंग के अप्राकृतिक होने का समाचार पढ़ा और लोगों में यह चर्चा आम होने लगी कि बर्फ का नकली शिवलिंग तैयार कर देश के लाखों श्रद्धालुओं की आस्था और श्रद्धा के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है | समाचार यह भी कि सरकार ने इसकी सच्चाई जानने के लिए विशेषज्ञों की एक समिति बनाई है | बहुत से लोग इसे धोखाधड़ी का करतब मान कर इसका मजाक उड़ाने लगे | इसी बीच समाचार, श्रीनगर में अकस्मात् भड़क उठे दंगे का भी अखबारों में प्रकाशित होने लगा | सबसे अधिक दहशत आतंकवादियों के ओर से थी, जिन्होंने अमरनाथ-यात्रियों के काफिले पर हमला करने की चेतावनी दे रखी थी | मतलब यह कि परिस्थिति गंभीर थी और मुझे हर हाल में एक खतरा मोल लेकर ही इस यात्रा के लिए अपने को तैयार करना था | मेरे घर परिवार के लोग तथा नाते-रिश्तेदार भी इस यात्रा पर न जाने की सलाह दे रहे थे | मेरी दोनों बेटियाँ जो पहले मेरे साथ चलने को तैयार थीं, अब मुकरने लगी थीं | सिर्फ मेरा बेटा राजेश मुझे हिम्मत बंधा रहा था और वह मेरे साथ चलने को भी तैयार था |

इन तमाम विपरीत परिस्थितियों को मैंने परे ठेलते हुए अपनी सारी श्रद्धा बर्फानी बाबा के चरणों में उंडेल दी | मैंने सोचा कि चाहे जो भी हो, मैं बाबा का दर्शन अवश्य करुँगी, भले ही मुझे इसकी कीमत अपनी जान देकर ही क्यों न चुकानी पड़े | साथ चलने को मेरा बेटा राजेश तैयार बैठा था | एक  इरादा मेरे मन में और चल रहा था कि बाबा अमरनाथ की इस यात्रा और दर्शन के मार्ग में पड़ने वाले अन्य पूज्य और दर्शनीय स्थलों का भी दर्शन-अवलोकन करते हुए चलूँगी | हमारी वास्तविक यात्रा जम्मू से शुरू होने वाली थी, अत: मैंने अपने हैदराबाद से प्रस्थान तिथि के पहले ही राजेश को जम्मू के लिए रवाना कर दिया | मौसम बहुत अनुकूल था, आकाश में बादल घिरे थे और हवा शरीर को छूकर आनंद दे रही थी | मैं 3 अगस्त 2006 को हैदराबाद से हवाई जहाज पकड़ कर दिल्ली पहुँची और वहाँ से जम्मू के लिए दूसरा हवाई जहाज पकड़ लिया | राजेश जम्मू एयरपोर्ट पर टैक्सी लेकर मेरी अगवानी कर रहा था | मैं जम्मू-तवी में उस दिन अपने बेटे के साथ एक होटल में रुक गई | उसी दिन मन में भाव आया कि क्यों न लगे हाथ जम्मू के भी दर्शनीय स्थलों का अवलोकन हो जाये | इस यात्रा में हालाँकि हमने पहले की यात्रा से कुछ दर्शनीय स्थलों को दुबारा देखा और उनका विवरण भी इस आलेख में संग्रहित किया, लेकिन बहुत से ऐसे स्थानों पर भी हम लोग गये, जहाँ पहले नहीं गये थे | वैसे भी जम्मू हिमालय की तलहटी में बसा एक दर्शनीय पर्वतीय स्थान है | इसकी प्राकृतिक शोभा स्वयं में एक अलौकिक सौन्दर्य की रचना करती है | यह शहर ‘तवी’ नदी के किनारे बसा है | समुद्र ताल से इसकी ऊँचाई 305 मीटर है | इसका कुल क्षेत्रफल 20.36 वर्ग कि.मी. है | सन् 1730 ई. में डोंगर शासक जंबूलोचन ने जम्मू नगर को इस सुरम्य प्राकृतिक उपत्यका में स्थापित किया था | ‘जंबू’ शब्द ही जम्मू बन गया | इस नगर में अनेक जातियों, संस्कृतियों तथा भाषाओं का संगम है | प्रकृति की गोद में एक सुन्दर बालक की तरह खेलते हुए इस नगर की शोभा देखकर देश-विदेश के पर्यटक विभोर हो जाते हैं | जम्मू शहर कश्मीर घाटी में प्रवेश का मुख्य मार्ग है | पर्वतीय हरी-भरी घाटियों की वन्य शोभा और सुदूर तक विस्तृत हरे-भरे मैदानों का संगम इसके सौन्दर्य को स्वर्णिम बना देता है | हरी चूनर ओढ़े इसका भौगोलिक परिवेश जिस आनंद की सृष्टि करता है, उसका अनुभव भर किया जा सकता है, शब्दों से वर्णन कर पाना बहुत कठिन है | इसे मंदिरों का नगर भी कहा जाता है | इसकी जनसंख्या दस लाख से कहीं अधिक है | कश्मीर घाटी के ठीक विपरीत यहाँ हिन्दुओं और सिक्खों की आबादी सर्वाधिक है | इसकी सबसे बड़ी खूबी तो यह है कि जम्मू से होकर रावी, तवी और चिनाब जैसी तीन सदानीरा नदियाँ प्रवाहित होती है | उत्तर भारत के लिए यह एक प्रमुख व्यापारिक केंद्र भी है | शहर चारों तरफ से बर्फीली शिवालिक और पीर पंजाल की पर्वत श्रेणियों से घिरा हुआ है |

3-08-2006  हमने जम्मू के प्रमुख दर्शनीय स्थलों के अवलोकन का फैसला किया और मैं पुत्र राजेश के साथ प्रसिद्ध बाहु किला देखने पहुँच गई | शहर से लगभग 5 कि.मी. दूर यह किला एक सुन्दर सुरम्य पहाड़ी पर तवी नदी के तट पर स्थित है | इस किले को जम्मू का सबसे पुराना किला माना जाता है | यहाँ के लोगों की मान्यता है कि इस किले को तत्कालीन राजा बाहुलोचन ने 9वीं शताब्दी में अपने राज्य की सुरक्षा के लिए बनवाया था | हैरत की बात यह है कि हजार साल से भी लंबा काल-खण्ड बिताने के बावजूद यह किला कहीं से भी पुराना जैसा नहीं लगता | किले में भीतर प्रवेश के पहले हम सभी की बाकायदा तलाशी ली गई | किले के भीतर काली माता का एक प्रसिद्ध मंदिर है | इन्हें स्थानीय लोग बवे काली माता कहकर पुकारते हैं | मंदिर के गर्भगृह में तीन मूर्तियाँ प्रतिष्ठित हैं | दाहिनी तरफ माता वैष्णों देवी, बीच में महाकाली और बायीं तरफ लक्ष्मीजी की मूर्ति है | महाकालीजी की मूर्ति काले चिकने पत्थर को तराश कर बनाई गई है | अन्य दोनों मूर्तियाँ संगमरमर की हैं | तीनों की मूर्तियों का स्वरूप प्राचीन शिल्प का एक उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करता है | यहाँ मंगलवार और शनिवार को श्रद्धालुओं की भीड़ बहुत ज्यादा बढ़ जाती है | हमने मंदिर में अपनी पूजा-श्रद्धा निवेदित की और बाहर परिसर में निकल आये | यहाँ प्रकृति गोद में बिहार करते शांत वातावरण ने हमें काफी आनंदित किया | ऊँची पहाड़ी की तलहटी में पूरा जम्मू शहर हरे-भरे चट्टियल मैदान के बीच बहुत मनभावन लग रहा था | हम वहाँ से सिविल एयरपोर्ट के पीछे एक सूफी फकीर पीर बुधन अलीशाह, जिन्हें यहाँ के लोग ‘पीर बाबा’ कहते हैं कि दरगाह में माथा टेकने पहुँचे |

यहाँ एक अनोखी बात, जिसे सांप्रदायिक सौहार्द्र की अन्यतम मिसाल कहा जा सकता है, यह देखने में आई कि बवे माता के मंदिर में माथा नवाने वाले श्रद्धालुजन पीर बाबा की मजार पर भी उसी अकीदे के साथ माथा नवाते हैं | यहाँ के लोग यह मानते हैं कि यहाँ मन्नते माँगने वालों की मन्नते पीर बाबा पूरी करते हैं और भूत-प्रेत की काली परछाइयाँ दूर भाग जाती है | पीर बाबा सीक्ख सम्प्रदाय के अंतिम गुरु, गुरु गोविंद सिंहजी के समकालीन तो थे ही, उनके अजीज मित्रों में भी शुमार थे | यहाँ एक किंवदंती यह भी सुनने में आई कि पीर बाबा ने 500 साल की उम्र पार करने के बाद शरीर छोड़ा था | प्रत्येक गुरूवार को यहाँ जियारत करने वालों की भारी भीड़ आती है, इसमें हिदू और मुसलमान समान भाव से शामिल होते हैं | जम्मू की यात्रा पर आने वाला लगभग हर पर्यटक इन दोनों स्थानों पर जरुर आता है | यहाँ दरगाह से लगा हुआ एक बहुत बड़ा उद्यान है, जिसे बाग़-ए-बाहु उद्यान कहा जाता है | पीर बाबा की कदम-पोसी करने के बाद हम इस उद्यान की ओर मुखातिब हुए | यह उद्यान बाहु किले के सामने 490 केनाल पर बनाया गया है | यह काफी ऊँचाई पर है, जिस कारण यहाँ से जम्मू शहर की नयनाभिराम झाँकी देखने को मिलती है | लोगों ने बताया कि शाम ढलने के बाद जब बाग़ में लाइटनिंग होती है, तो वह दृश्य बहुत मनमोहक समझ में आता है | इस उद्यान में वृक्षों और फूलों की क्यारियों को बहुत करीने के साथ सजाया गया है और अलग-अलग प्रजातियों के पक्षियों का कलरव तथा फूलों के इर्द-गिर्द डोलती रंग-बिरंगी तितलियों और भौरों का गुंजन वातावरण को अभिराम बना देता है | हम सावन के महीने में पहुँचे थे, अत: तवी नदी अपने उफान पर थी, उसके प्रवाह का कल-कल निनाद एक अभिनव संगीत की सृष्टि कर रहा था | नदी के ऊपर एक कृत्रिम जलाशय का निर्माण कर दिया गया था, जहाँ पर्यटक नौका-विहार का आनंद लूट रहे थे | यह सब उद्यान का ही एक हिस्सा है | उद्यान का विस्तार काफी दूर तक है और बहुत सारे फौव्वारे इसकी हरियाली को अपनी फुहारों से अनवरत भिगोते रहते हैं | फूलों की क्यारियाँ विभिन्न रंगों के सुगंधित फूलों से सजी-धजी दुल्हन की तरह लगती है | लोग अक्सर यहाँ पिकनिक का मजा लूटने आया करते हैं | कभी यह उद्यान कुछ विशिष्ट लोगों की तफरीह के लिए ही सीमित था, लेकिन अब इसे सार्वजनिक घोषित कर दिया गया है | हमने यहाँ कई तस्वीरें भी ली और घूम-फिर कर भरपूर मजा लिया |

उद्यान में घूमने के बाद हम मिनी हरिद्वार, जिसे हरि की पौढ़ी भी कहते हैं, देखने गये | यहाँ कई विशिष्ट मंदिरों का एक वृहदाकार परिसर तैयार किया गया है, जिसमें ओमकारेश्वर और रामेश्वर मंदिर की भी एक सुन्दर प्रतिकृति देखने को मिलती है | यह दोनों नये हैं और आधुनिक शिल्पकला के जीवंत उदाहरण हैं | सफेद संगमरमर से यहाँ रामदरवार का निर्माण किया गया है, जिसमें स्थापित मूर्तियाँ अत्यंत चित्ताकर्षक हैं | खासकर शिव-पार्वती की युगल मूर्ति शिल्पकला का उत्कृष्ट नमूना है | परिसर में बायीं तरफ सूर्यपुत्री तवी और गंगा माता की सुंदर संगमरमर की प्रतिमा एक मंदिर में प्रतिष्ठित है | परिसर के एक अन्य मंदिर में 12 ज्योतिर्लिंगों को भी प्रतिष्ठित किया गया है | यहीं प्रसिद्ध संत श्री 108 स्वामी चिन्मयानंद की भी एक संगमरमर से बनी भव्य प्रतिमा प्रतिष्ठित है | माता वैष्णों देवी की संगमरमर निर्मित मूर्ति के साथ ही सूर्य भगवान और चामुण्डा माता के भी सुंदर मंदिर स्थापित किये गये हैं | गणेश और हनुमान की सुंदर विशाल प्रतिमाओं के अलावा बाल श्रीकृष्ण को छाबड़ी में लिए यमुना पार करते वासुदेवजी की प्रतिमा भी बहुत आकर्षक है | इस परिसर से कुछ सीढ़ियाँ उतर कर तवी नदी के घाट पर जाया जा सकता है | यहाँ तवी नदी के किनारे कुछ समय व्यतीत करने के बाद हम शिवधाम मंदिर की दिशा में आगे बढ़े |

यह मंदिर चिनाब नदी की एक नहर के तट पर स्थित एक चित्ताकर्षक मंदिर है | यहाँ निचे के तल में निर्मित गर्भगृह में कई देवी-देवताओं की सुंदर मूर्तियाँ स्थापित हैं, जिनमें राम दरबार, गायत्री माता, माता त्रिपुर सुंदरी, अट्ठारह हाथों वाली दुर्गा माता की प्रतिमा, पिंडी के रूप में स्थापित सरस्वती, लक्ष्मी और महाकाली की प्रतिमाओं के साथ ही दस भुजा वाली महिषासुर मर्दिनी, श्री गणेश जी और हनुमान जी की प्रतिमाएँ हैं | महाकाली की प्रतिमा को छोड़कर अन्य सभी सफेद संगमरमर की हैं | इनका शिल्प इतना हृदयग्राही है कि यह सभी प्रतिमायें सजीव प्रतीत होती हैं | इसी तल के एक दूसरे गर्भगृह में नृसिंह भगवान, सूर्यदेव और कल्कि भगवान एक आले में विराजमान हैं | एक तरफ माँ गंगा की मूर्ति है तो दूसरी तरफ निरंजनदासजी की सुंदर सी समाधि और बाबा रामशरणदासजी की भी समाधि है | एक तरफ हवनकुण्ड बना हुआ है | ऊपर कुछ सीढ़ियाँ चढ़ने के बाद दूसरे तल्ले के गर्भगृह में भगवान शिव और माता पार्वती प्रतिष्ठित हैं | इनके दाईं तरफ राधाकृष्ण और बायीं तरफ सीताराम की युगल मूर्तियाँ विराजमान हैं | गर्भगृह के बीच वाले हिस्से में एक विशाल शिवलिंग है, जिसे घेरे हुए 12 छोटे-छोटे शिवलिंग स्थापित किये गये हैं | परिसर में एक सुंदर घना और छायादार कदम्ब का वृक्ष है | मंदिर सहित पूरा परिसर बेशुमार भक्तजनों की आमद के बावजूद साफ-सुथरा बना रहता है | यहाँ संगमरमर से बने चिकने फर्श मंदिर की शोभा बढ़ाते हैं |

इस क्रम में आगे हम जम्मू ही क्या, पूरे देश में सर्वाधिक विख्यात मंदिरों में एक रघुनाथ मंदिर गये | कुछ ही वर्षों पहले इस मंदिर पर आतंकवादियों ने हमला कर मंदिर परिसर को रक्त-रंजित कर दिया था, तब से यह मंदिर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में आ गया था | यह भव्य और विशाल मंदिर शहर के दक्षिण हिस्से में स्थित उसकी हृदयस्थली माना जाता है | इस मंदिर की नींव 1835ई. में कश्मीर के राजा गुलाब सिंह ने रखी थी और उनकी मृत्यु के पश्चात उनके उत्तराधिकारी रणवीर सिंह ने इसे 1960ई. में पूरा किया था | मंदिर के भीतरी भाग में तीन तरफ से इसकी दीवारों पर सोने की परतें चढ़ाई गई है | मंदिर के गर्भगृह में रघुनाथजी (रामचन्द्रजी) की काले पत्थर से निर्मित मूर्ति एक सुन्दर और ऊँची वेदिका  पर प्रतिष्ठित है | दक्षिण तरफ लक्ष्मण जी और वामभाग में सीता माता की संगमरमर की मूर्ति विराजमान है | इन मूर्तियों की गढ़ना शिल्प की उत्कृष्टता को सजीव करती हुई इन्हें एक अलौकिक छवि से विभूषित कराती है | मंदिर की परिक्रमा में हिन्दुओं के 33 करोड़ देवता एक पट्टी पर उकेरे गये हैं | परिसर में दाहिनी तरफ नटराज मंदिर है | गर्भगृह में एक स्फटिक का विशाल शिवलिंग प्रतिष्ठित है | श्रावण माह में भक्तजन स्फटिक शिवलिंग का अभिषेक पार्श्व भाग में दूध चढ़ाकर कर रहे थे, लेकिन उसका प्रतिबिम्ब सामने दिखाई दे रहा था | रघुनाथ मंदिर की दिव्य छटा ने हमें सचमुच विमोहित कर दिया था, किन्तु विधिवत दर्शन-पूजन के बाद हमें आगे बढ़ना था, अत: हम आगे के क्रम में रणवीरेश्वर महादेव के दर्शनार्थ आगे बढ़ गये |

यह मंदिर जम्मू शहर का प्राचीन और अति प्रसिद्ध मंदिर है | यह मंदिर भव्य और विशाल तो है ही, बहुत ऊँचा भी है | यह मंदिर पूरे उत्तर भारत का सबसे बड़ा परिसर वाला मंदिर माना जाता है | इस मंदिर का भी निर्माण महाराजा रणवीर सिंह ने सन् 1883ई. में कराया था | देश के सभी शिव मंदिरों में इस मंदिर को इसलिए विशेष माना जाता है, क्योंकि यहाँ 12 स्फटिक के शिवलिंग प्रतिष्ठित हैं, जिनकी ऊँचाई 12” से 18”  तक है | मंदिर के गलियारे में काले पत्थर की शिलाओं पर अनगिनत सालीग्राम स्थापित किये गये हैं | इस दृष्टि से इस मंदिर का महत्त्व अन्यों की अपेक्षा विशेष आँका जाता है | मंदिर के मुख्य गर्भगृह में स्थापित शिवलिंग की ऊँचाई 7 फीट 6 ईंच से ज्यादा है | कई सीढ़ियाँ ऊपर चढ़ने के बाद ही मंदिर में प्रवेश संभव हो पाता है | हमने भी गर्भगृह में प्रवेश किया | वहाँ काफी भक्त जन भगवान शिव का बिल्वपत्र और मंदार पुष्प के साथ अभिषेक कर रहे थे | इसी गर्भगृह में शिव-पार्वती की अत्यंत सुन्दर और मनोहारी मूर्ति भी प्रतिष्ठित थी | हमने अपनी श्रद्धा निवेदित करने के बाद जम्मू की इस यात्रा को यहीं विराम दिया | हम वापस अपने ठहरने के स्थान पर आये | आगे हमें कटरा की ओर जाना था | शाम ढले हमने प्रस्थान किया | हमारी गाड़ी सरपट भागी जा रही थी और हम रोशनी में नहाये त्रिकूट पर्वत की श्रृंखलाओं को निहारते करीब 10.30 बजे रात को कटरा पहुँच गये | वहीं नटराज होटल में एक कमरा लेकर हमने रात्रि-विश्राम किया |
क्रमश:


 प्रस्तुति : संपत देवी मुरारका 

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