‘खेतलाई पोकरण किला’ या ‘बालगढ़’
आगे हम पोकरण किला देखने के लिए आगे बढ़े |
हम तनोटराय मंदिर से 215 कि.मी. का रास्ता तय
करके सीधे पोकरण पहुँचे | पोकरण का किला काफी पुराना है | सन 1414 ई. में राजा मालदेव ने गोमट पत्थरों से खेतलाई पोकरण किले का निर्माण
कराया था | इसे ‘बालगढ़’ भी कहा जाता है | यह किला थार के मरुस्थल के मध्यभाग में
स्थित है | यह चंपावत के शक्तिमान राठौड़ राजाओं की प्रतिकृति है | यहाँ के सभी
ठाकुर अपने नाम के साथ ‘प्रधान’ शब्द अवश्य जोड़ते हैं | किला चारों तरफ से बालू
पत्थर और पांच नमक सदृश पर्वत श्रृंखलाओं से घिरा है | पोकरण शब्द का अर्थ है
‘पांच मरुस्थलों में जल का आभास’ यह किला बहुत पहले व्यापार के एक केंद्र के रूप
में विकसित हुआ था | फारस तथा अरब के व्यापारी यहाँ से नमक और मसाले तथा उत्तम
कोटि के रेशमी वस्त्र भी यहाँ से ले जाते थे | यही वह स्थान है जहाँ देश ने दो-दो
परमाणु विस्फोटों के जरिये दुनिया में परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र होने का गौरव
प्राप्त किया | आधुनिक काल में यह अपनी सुन्दरता के चलते शहर के मध्य में स्थित
किला पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र अवश्य है, लेकिन यह भी नहीं भुलना होगा कि इसका
कण-कण अपने में एक यशस्वी इतिहास भी छिपाये हुए है | यहाँ के लोगों की संस्कृति,
अतिथि-सत्कार को अपना धर्म समझती है | सोलहवीं शताब्दी में मुग़ल बादशाह हुमायूं के
अलावा यहाँ की यात्रा शहंशाह अकबर और औरंगजेब ने भी की थी |
किला बीच के काल में कई जगहों पर ध्वस्त
हो गया था, जिसे यहाँ के उत्तराधिकारी पूर्व राजा नागेन्द्र सिंह राठौड़ पोकरण और
उनकी पत्नी ठकुरानी यशवंत कुमारी पोकरण ने वैभवयुक्त किले के तेजस्वी द्वार उपहार
स्वरूप यात्रियों के लिए खोल दिए थे | इन्होंने काफी धन लगाकर फिर से ठीक कराया है
| खासकर बाहर की शिल्पकारी को एक नये शिल्प की पहचान दी गई है | लाल-बलुई (गोमट)
पत्थरों से निर्मित इस किले के भीतर कई सुन्दर महल और इमारतें हैं | इनके झरोखें,
दीवारें और कंगूरे शिल्प के बेहतरीन नमूने कहे जा सकते हैं | किला लगभग 600
साल पुराना है और इसका निर्माण मुग़ल और राजस्थानी शिल्प का सम्मिश्रण
प्रतीत होता है | किले में स्थित ‘मंगल महल’ एक बहुत बड़ा हॉल है, जिसमें आठ
कोर्णों वाले चार झरोखे हैं | इन झरोखों की कटिंग देखकर कोई ‘वाह!’ कह सकता
है | हमारा दल अपने को खुशनसीब समझ सकता है कि हमें यहाँ के वर्त्तमान
उत्तराधिकारी नागेन्द्र जी से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ | उन्होंने न सिर्फ
हमसे बातचीत की अपितु हमें चाय नास्ता भी करवाया | उनकी सौम्यता तथा सदाशयता ने
हमें काफी प्रभावित किया | उनके द्वारा हमें इस किले और क्षेत्र के संबंध में काफी
जानकारियाँ भी मिलीं | आगे हम बालगढ़ संग्रहालय देखने गये |
बालगढ़ संग्रहालय की स्थापना सन 1992
में हुई | इस संग्रहालय में बहुत सी चीजें संग्रहित हैं, लेकिन संख्या
उन वस्तुओं और शास्त्रास्त्रों की है, जिनका प्रयोग युद्ध में राजपूत योद्धा किया
करते थे | हमें यहाँ जूना रसोड़ा, ऊंट और घोड़े की सीटें और कुलर्स, हाथी का हौदा,
पालकी का कक्ष, थम्बस, पलंग, ताले चाबियों का कक्ष, नागनेचा माता का मंदिर, सात
रानियों का रनिवास, शस्त्रशाला में उपरी हिस्से में मुग़ल काल की बंदूक और नीचे तीन
राजपूत और तीन ब्रिटिश मॉडल की गन देखने को मिली | इनके अलावा ढाल-तलवारें और
युद्ध में काम आने वाले जिरह-बखतर तथा मंगलसिंह के राजसी शेरवानी पोशाकें भी देखने
को मिलीं | यहाँ एक कक्ष बच्चों की पोशाकों के लिए अलग से है | दुसरे एक कक्ष में
राजस्थानी चित्रकला की बानगी प्रस्तुत करते कुछ चित्र हैं और विविध प्रकार की
सुगंधियां तथा इत्र भी हैं | एक पूरा कक्ष रानियों क्र श्रृंगार के विविध उपादानों
तथा आभूषणों से भरा है | किले का आधा भाग मौजूदा समय में होटल और रिसॉर्ट बना दिया
गया है | हमारी बड़ी इच्छा वह जगह देखने की थी, जहाँ 1974 में
प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और 1996 में प्रधानमंत्री
अटल बिहारी वाजपेयी ने परमाणु-विस्फोट कराया था | सन 1998 में
पोकरण-फील्ड फायटिंग रेंज में पांच परमाणु-विस्फोट कराये थे | लेकिन रात हो जाने
की वजह से हम वहाँ नहीं जा सके | उसके बाद कोलायत की दिशा में प्रस्थान किया |
संपत देवी मुरारका
अध्यक्षा इण्डिया काईइंडनेस मूवमेंट
लेखिका यात्रा विवरण
मीडिया प्रभारी
हैदराबाद
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