Tuesday, 10 December 2013

गजनेर पैलेस


गजनेर पैलेस में संपत देवी मुरारका 


महल में गणेश मंदिर में श्रद्धा निवेदित करती लेखिका के साथ विजयलक्ष्मी काबरा 


 वन्य-प्राणी अभयारण्य में नील गाय


झील के किनारे लेखिका 


 महल के ‘टेनिस कोर्ट’ में एक सुन्दर बालकनी से झील का दृश्य निहारती लेखिका 


गजनेर पैलेस

अगले दिन 28 फरवरी 2007 के दिन हम गजनेर पैलेस देखने गये | यह बीकानेर से 32 कि.मी. की दूरी पर जैसलमेर मार्ग पर स्थित है | हरे-भरे जंगल से युक्त गजनेर पैलेस एवं गजनेर वन्य-प्राणी अभयारण्य का निर्माण बीकानेर के शक्तिशाली एवं चतुर शासक महाराजा श्रीगंगासिंह ने कराया था | गज सागर झील के दक्षिण दिशा के तट पर स्थित यह निजी वन्य-प्राणी अभयारण्य लगभग 6000 एकड़ के क्षेत्रफल में प्रसारित है | इसमें 3 कि.मी. भूमि पर गजनेर महल का निर्माण कराया गया है और यह महल तीन तरफ से जंगलों से आच्छादित है | लाल बलुआ पत्थर से निर्मित महल अपनी सुन्दर नक्काशी एवं राजपूत परंपरा का अनूठा व सच्चा मिश्रण है, जो अपने वास्तु-शिल्प के लिए काफी प्रसिद्ध है | सन 1910 और 1913 के मध्य में इस महल का निर्माण 5 खण्डों में कराया गया था | कहा जाता है कि यह महल गर्मी के दिनों में राजपरिवार का आरामगाह होता था | राजा अपने विदेशी अतिथियों के साथ शिकार खेलने यहाँ आया करते थे |

गजनेर पैलेस की नींव ‘राव चंदा’ ने रखी थी | वे बीकानेर के संस्थापक ‘राव बीका जी’ के पड़ दादा जी थे | उन्होंने जेसलमेर के मार्ग पर पानी एकत्रित करने के लिए एक सरोवर का निर्माण भी कराया था | कुछ समय के पश्चात बीकानेर के महाराजा गज सिंह जी (सन 1745-1787) ने एक महल का निर्माण स्वयं की पत्नी के लिए करवाया | महल का नाम ‘जलमहल’ रखा गया | उस महल में एक दरबार हॉल का निर्माण भी करवाया गया था, उस हॉल का नाम ‘पच्चीस चौक (25 स्क्वेयर)’ था | इस महल का नामकरण स्वयं के नाम पर ‘गजसिंहपुरा’ रखा था | कुछ समय पश्चात ही इसके नाम को बदलकर ‘गजनेर महल’ रख दिया गया | जो-जो राजा बदलते गये, वे महल का नक्शा बदलते गये, लेकिन इतना बदलाव नहीं आया | सरदार सिंह जी जब तक राजसिंहासन पर विराजित थे तब-तक वे उत्सुक शिकारी थे | उन्होंने गजनेर को शीघ्रता से अपने आखेट के लिए शिविर स्थापित कर लिया था | तत्पश्चात महाराजा गंगासिंह जी ने 20 वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में महल को बहुत सुन्दर आकृति प्रदान की | सन 1899 ई. में उत्तर भारत में अकाल पड़ गया था, जिससे गज सागर झील सूख गई थी | गंगासिंह जी ने उस झील को विस्तृत किया, जिससे अच्छे मानसून आने पर दो साल तक उसमें जल एकत्रित रह सके  | उन्होंने जंगल में रहने वाले वन्य-प्राणी की सुरक्षा के लिए सुरक्षाकर्मी भी नियुक्त किये | अपने चहेते अतिथियों के लिए एक सुन्दर और विशाल महल आधुनिक शैली में निर्माण करवाना चाहते थे | लालगढ़ महल का नक्शा बनाने वाले ‘सरसेम्युल स्वींटन’ को ही गजनेर में महल का नक्शा बनवाने के लिए नियुक्त किया था | महाराजा गंगासिंह जी के पोते महाराजा करणीसिंह जी ने वन्य-प्राणी अभयारण्य का विस्तार करवाया क्योंकि वे अच्छे शिकारी थे | कहा जाता है कि कई बार उन्होंने ओलंपिक खेलों में भारत के लिए निशानेबाजी में प्रतिनिधित्व भी किया था |

कहते हैं कि 60 सालों में विश्व के बड़े-बड़े नेता गजनेर आये हुए हैं, जैसे जार्ज V (वेल्स के राजकुमार), एडवर्ड VIII (वेल्स के राजकुमार), एम. क्लेमेन्स्यू (फ्रांस के पूर्व प्रधानमंत्री), ग्रीस के राजा, श्री राजेन्द्र प्रसाद (भारत के प्रथम राष्ट्रपति) और श्री मदन मोहन मालविया (कांग्रेस के नेता) आदि | राज्यों से भी जैसे कश्मीर, मैसूर, जामनगर, बरोडा, बनारस तथा पटियाला से दस से अधिक भारत के राजप्रतिनिधि एवं महाराजा गजनेर का अवलोकन करने आये थे | इसके अतिरिक्त हेस के नवाब (कैसर और जर्मनी के विलियम्स द्वितीय के चचेरे भाई) एवं केनोट के नवाब और एच. एच आगा खान भी गजनेर आये थे |

यहाँ की जलवायु स्वास्थ्य वर्धक मानी जाती है | यहाँ गर्मियों में अधिकतम तापमान 26°c से  44°c सेंटीग्रेड के बीच बना रहता है और सर्दियों में 8°c से 23°c सेंटीग्रेड के बीच होता है | वर्षा 440 मि.मि. होती है | यात्रियों के भ्रमण के लिए वैसे अक्टूबर से मार्च तक का समय बेहतर माना जाता है |

एच.आर.एच. ग्रुप के होटल वालों ने गजनेर महल को सन 1976 में होटल में तबदिल कर दिया है | अब इस होटल को चार भागों में विभाजित किया गया है, डूंगर निवास, मंदिर चौक, गुलाब निवास और चंपा निवास | इसमें एक मृगतृष्णा नामक मधुशाला है | इसकी छत पर उच्चकोटि की चित्रकारी भी की गई है | होटल में ब्रिलियट्स और टेनिस खेलने के कक्षों का भी निर्माण किया गया है | ऊँट एवं घोड़े की सवारी करने की सुविधा भी उपलब्ध है | महल के अन्दर प्रवेश-द्वार पर कई वृक्ष हैं | ये वृक्ष अलौकिक रूप से महल को आच्छादित किये हुए हैं | महल के ‘टेनिस कोर्ट’ में एक सुन्दर बालकनी है | इसमें पुरानी एवं आधुनिक शिल्प-कला की बेजोड़ प्रस्तुति हुई है | यहाँ एक मस्जिद का निर्माण भी कराया गया है | इसके पृष्ठ भाग में घना जंगल है | यहाँ झील के किनारे मिट्टी के टीले पर ‘शबनम महल’ का निर्माण किया गया है | यहाँ का नयनाभिराम दृश्य देखकर मन मन्त्र-मुग्ध हो गया | झील और महल के चारों ओर जंगली सुअर एवं काले मृग निर्भय होकर विचरण करते ही हैं, दर्शक भी निडर होकर उनको बहुत पास से देख सकते हैं | वर्त्तमान में भी क्रिसमस के समय पर्यटक यहाँ आकर दूर देशों से आये पक्षियों को पानी पिलाते हैं | इस झील में पर्यटकों को नौकायान की सुविधा दी गई है | ऊँट एवं घोड़े की सवारी करने की सुविधा भी उपलब्ध है | महल अर्थात होटल और झील का अभिराम दृश्य देखने के बाद हम यहाँ का प्रसिद्ध वन्य-प्राणी अभयारण्य देखने के लिए आगे बढे |

वन्य-प्राणी अभयारण्य में नील गाय, चिंकारा, शेर, चीते, भालू, जंगली सूअर, जैसे वन्य-प्राणी तो हमने देखे ही, एक ऐसे वन्य प्रजाति भी हमें देखने को मिली जो हमने इसके पहले कहीं नहीं देखी थी | यहाँ हमने झूंड के झूंड शाही रेतीले तीतरों को देखा | इनकी प्रजाति इस अभयारण्य के अलावा और कहीं नहीं पाई जाती | यहाँ जनवरी के महीने में ऊँटों का एक बहुत बड़ा मेला भी लगता है, जहाँ इनकी विक्री तो होती ही है, इनकी दौड़ तथा अन्य प्रतिस्पर्धायें भी कराई जाती है | आगे हम गजनेर से करणी माता मंदिर के लिए आगे बढ़े |

वैसे घुमने को मैं राजस्थान के अनेक प्रसिद्ध तथा दर्शनीय स्थानों का दर्शन कर चुकी हूँ | उनका वृत्तांत मैं अलग से पैदा करूंगी | लेकिन मेरी 2007 की इस राजस्थान यात्रा का विराम यहीं होता है |

संपत देवी मुरारका
लेखिका यात्रा विवरण
अध्यक्षा इण्डिया काईइंडनेस मूवमेंट
मीडिया प्रभारी
हैदराबाद








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