Wednesday 8 August 2018

अमरनाथ यात्रा – कश्मीर-श्रीनगर




अमरनाथ यात्रा – कश्मीर-श्रीनगर
करीब 25 साल पहले मैं कश्मीर आई थी | वैसे यह मेरी कश्मीर की चौथी यात्रा थी, लेकिन तब मेरी दृष्टि पर्यटक की दृष्टि नहीं थी| अत: इस बार सारे संसार में स्वर्ग के नाम से विख्यात कश्मीर को एक पर्यटक की निगाह से निहारने की उत्सुकता मेरे मन में बनी हुई थी | वैसे देश में और विदेशों में भी रमणीय सुषमा से युक्त दर्शनीय स्थलों की कोई कमी नहीं है और अपनी-अपनी जगह सभी विशिष्ट है, लेकिन कश्मीर मात्र विशेष ही नहीं, यह चिर युवा है और चिर नवीन है | यह वह है, जैसा कोई दूसरा कभी किसी हालत में हो ही नहीं सकता | सही अर्थों में कश्मीर सौन्दर्य-सुषमा का एक समुच्चय है |
      कश्मीर का अर्थ है, साफ-शफ्फाफ पिंघली हुई चाँदनी की तरह चमकती हुई झीलें, बर्फ से ढकी पर्वत श्रृंखलाएँ, घास के हरे-भरे मैदान, चिनार और देवदार के आकाश चूमते घने छायादार वृक्ष, सुविस्तृति वन्य उपत्यका, सुंदर से सुंदर उद्यान, ऊँचे-ऊँचे पर्वतों के बीच रंग-बिरंगे फूलों से लदी सुरम्य घाटियाँ तथा स्वच्छ जल से अभिषिक्त होती लिद्दर और सिंधु जैसी कई नदियाँ | प्रकृति की झोली में सौन्दर्य और सुषमा की ऐसी कोई निधि है ही नहीं, जिसे उसने कश्मीर की शोभा पर निछावर न किया हो | आज भी अकेले कश्मीर की इसी शोभा को निरखने दुनिया भर से जितने पर्यटक यहाँ आते हैं, उतने शायद ही अन्यत्र कहीं जाते हों | ‘आज भी’ कहने का मतलब यह है कि पिछले कई वर्षों कश्मीर घाटी आतंकवाद की ज्वाला में झुलस रही है और यहाँ की यात्रा करने वालों के मन में एक दहशत का भाव भर गया है | इस दहशत के बावजूद कश्मीर की झीलों पर तैरतें शिकारे आज भी पर्यटकों की आमद से गुलज़ार हैं | मुग़ल बादशाहों का लगाव कश्मीर की इस खूबसूरत वादी से अत्यंत घनिष्ठ रहा है और उन्होंने यहाँ कई शानदार इमारतों का निर्माण करवाने के साथ ही सुंदर उद्यानों की भी रचना की है | विशेष रूप से मुग़ल बादशाह जहाँगीर तथा शाहजहाँ और उनकी बेगमों ने कश्मीर को सजाने-संवारने में कोई कसर नहीं छोड़ी है | सारी दुनिया इसकी खूबसूरती की दीवानी है और लोग इसे प्यार की घाटी कहकर पुकारते हैं | यूँ कश्मीर के तीन रिसॉर्ट – पहलगाम, गुलमर्ग और सोनमर्ग बहुत प्रसिद्ध हैं और इन तीनों तक पहुँचने के रास्ते अलग-अलग हैं | श्रीनगर, घाटी का सबसे बड़ा शहर है और वह कश्मीर की ग्रीष्म-कालीन राजधानी भी है |
      वास्तव में श्रीनगर को कश्मीर-वादी का दिल कहा जा सकता है | यह राज्य की राजधानी होने से गौरवान्वित अवश्य है, लेकिन शेष भारत से इसका जुड़ाव जम्मू से ही संभव हो पाता है | इस शहर का विस्तार कुल 105 वर्ग कि.मी. में है और समुद्रतल से इसकी ऊँचाई 1730 मी. है | दिसंबर से फरवरी तक यहाँ शीत ऋतु का भयंकर प्रकोप रहता है | उस समय पूरा शहर बर्फबारी से ढाक जाता है और इसकी झीलें भी जमकर बर्फ बन जाती है, लेकिन मार्च से नवम्बर तक इसका मौसम बहुत खुशगवार होता है, तब इसकी हरी-भरी वादियों की शोभा दर्शनीय होती है | इस शहर की जनसंख्या 10 लाख से अधिक है | इस शहर के बीचोबीच झेलम नदी बहती है और शहर का विस्तार नदी के दोनों तरफ सामान रूप से प्रसारित है | वैसे श्रीनगर को पुराना शहर और नया शहर के रूप में भी लोग विभाजित करते हैं | माना जाता है कि नये शहर की स्थापना यहाँ के राजा प्रवर सेन ने की थी | नगर के दोनों भागों को जोड़ने के लिए झेलम नदी पर सात पुल बनाये गये हैं | केसर की क्यारी से उठने वाली सुगंध इस शहर के वातावरण को हमेशा तरोताजा और स्वास्थ्यप्रद बनाये रखती है | मान्यता यह भी है कि शहर का अस्तित्त्व दो हजार सालों से यथावत कायम है और इसने उत्तर भारत के इतिहास में अपना एक ख़ास स्थान बनाया है | इस शहर को झीलों का शहर भी कहा जाता है | कहा यह भी जा सकता है कि पूरा शहर इन्हीं झीलों की गोद में लेटे हुए किसी शिशु की भाँती खिलखिलाता रहता है | डल, नगीन, नसीम और अंचार जैसी झीलें एक दूसरे के साथ मिलकर इस शहर को एक नया रुतबा और नया अंदाज देती है | वैसे डल झील को तो पूरी कश्मीर वादी की जीवन-रेखा कहने में किसी को कोई संकोच नहीं हो सकता | डल झील के किनारे खड़े शिकारे, जिन्हें पर्यटकों के लिए मिनी होटल भी कहा जा सकता है, इस कदर सजे-सजाये दिखते हैं कि इनकी सुन्दरता डल झील की प्राकृतिक सुन्दरता को एक नया आयाम देती लगती है | कमोवेश यही दृश्य अन्य झीलों में भी दिखाई देता है | ये हाउसबोट एक तरह के अस्थायी निवास तो होते ही हैं, ये परिवहन की भी सुविधा प्रदान करते हैं | श्रीनगर जितना अपनी झीलों की वजह से ख्यात है, उतना ही यह अपने शानदार बाग़-बगीचों के लिए भी मशहूर है | परी महल, चश्मे शाही, निशात बाग़ और शालीमार को श्रीनगर की जान कहा जाता है | वैसे श्रीनगर अपनी कारीगरी के लिए भी पूरी दुनिया में जाना जाता है | यहाँ के लोग लकड़ी पर सुंदर बेल-बूटों की नक्काशी तो करते हैं, सबसे अधिक प्रसिद्ध यहाँ की पश्मीने की शाल है, जिस पर की गई कशीदाकारी अपनी कलात्मकता का बेजोड़ उदाहरण प्रस्तुत करती है | यहाँ की केसर बहुत मशहूर है और उसकी खेती यहाँ बड़े पैमाने पर होती है | यहाँ की जनसंख्या में मुसलमानों की संख्या बहुत ज्यादा है, लेकिन नगर में हिन्दू, सिक्ख और ईसाई भी अपनी धार्मिक स्वतंत्रता के साथ रहते हैं | यहाँ हिन्दुओं के कई प्राचीन और आधुनिक मंदिर हैं | यहाँ शंकराचार्य और हनुमान मंदिर बहुत प्रसिद्ध हैं | मुसलमानों की हजरत बल मस्जिद के अलावा सिक्खों का गुरुद्वारा रेनवाड़ी की भी काफी प्रसिद्धि है | इसके अलावा ईसाईयों के लिए कैथोलिक चर्च भी है | इतना जरुर है कि सदियों से यह शहर धर्मनिरपेक्षता की एक मिसाल बना हुआ था, मगर पिछले कुछ सालों से अलगाववादियों और सीमा पार की राह पर आतंकवादियों के खूनी खेल के चलते यहाँ के लोगों के मन में एक-दूसरे के प्रति संदेह का वातावरण जरुर बन गया है और इसके चलते वादी में आने वाले पर्यटकों की संख्या भी घटने लगी है |
       हमने नगीन झील के एक हाउसबोट में एक रूम किराये पर ले लिया था | हमारा आज का लक्ष्य श्रीनगर और आस-पास के बहुत से दर्शनीय स्थल थे, जिसकी शुरुआत हमने यहाँ की प्रसिद्ध हजरतबल मस्जिद से की | हजरतबल मस्जिद डल झील के पश्चिमी छोर पर शहर से 9 कि.मी. की दूरी पर है | उसके एक ओर झील और दूसरी तरफ पहाड़ियाँ हैं | श्वेत रंग की इस सुंदर मस्जिद के भीतर प्रवेश करने के पूर्व तलाशी देनी पड़ती है | सफेद संगमरमर से निर्मित इसका विशाल गुंबद और एक मीनार इसकी शोभा में चार-चाँद लगा देते हैं | गुंबद पर बहुत सुंदर पच्चीकारी की गई है | मस्जिद को आधुनिक रूप में नया स्वरूप देने के कार्य सन् 1975 में जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री शेख मुहम्मद अब्दुल्ला ने किया था | मस्जिद में भीतर प्रवेश करने की इजाजत स्त्रियों को नहीं है | इसलिए मैंने बाहर से ही इसका अवलोकन किया | मुस्लिम औरतें बाहर वाले कक्ष में नमाज अदा करती हैं | मस्जिद के भीतर इस्लाम धर्म के प्रवर्तक और पैगम्बर हजरत मुहम्मद साहब का एक बाल यहाँ यादगार के तौर पर सुरक्षित रखा गया है | कुछ ख़ास-ख़ास मौकों पर यह लोगों के दर्शनार्थ प्रदर्शित किया जाता है | इस मस्जिद की ख्याति पूरे मुस्लिम दुनिया में है और बहुत दूर-दूर से यात्रायें कर मुसलमान यहाँ जियारत करने आते हैं | मस्जिद की खासियत यह है कि यहाँ कबूतरों की संख्या बहुत ज्यादा है | ये यहाँ आने-जाने वालों के सर पर मंडलाते रहते हैं और मस्जिद के परिसर में झुण्ड के झुण्ड उतर कर दाना भी चुंगते रहते हैं | हमने भी बाहर से मक्की के दाने खरीदकर परिसर में छींट दिया | देखते ही देखते सैंकड़ों  संख्या में कबूतर उतर कर दाना चुंगने लगे | हजरतबल के बाद हमें कायदन निशात बाग़, जो बिल्कुल मस्जिद के सामने है, जाना चाहिए था, लेकिन हमने यहाँ से परीमहल जाने का निश्चय कर लिया |
     परीमहल शहर से करीब 11 कि.मी. की दूरी पर स्थित यह महल, कहा जाता है कि बहुत पहले एक बौद्ध मठ के रूप में प्रतिष्ठित था | चश्मशाही से भी एक रास्ता इस स्थान तक आता है | इस महल का जीर्णोद्धार कर इसको मौजूदा शक्ल में स्थापित करने का काम मुग़ल बादशाहों ने किया था | शाहजहाँ के बड़े बेटे दारा शिकोह ने इस स्थान को एक उच्चकोटि के ‘ज्योतिष विद्यालय’ के शक्ल में ढाला था | कई सीढ़ियाँ चढ़कर इसके भीतर प्रवेश करना होता है | महल के निचले खंड में भी दो मंजिलें हैं और ऊपरी खंड में भी दो मंजिलें हैं | इसका पूरा परिसर चारों तरफ से एक सुन्दर उद्यान के रूप में स्थापित है और बीच में यह सुन्दर महल इस तरह शोभायमान है, जैसे कोई परी अपने पंख फैलाकर बहुत आहिस्ता जमीन पर अपने पाँव रख रही हो | श्रीनगर के तीन गोल्फ के मैदान, जो झील के निकट बुलावार्ड रोड पर स्थित हैं, यहाँ से स्पष्ट और खूबसूरत दिखाई देते हैं | विश्व प्रसिद्ध ‘रॉयल स्प्रींग्स गोल्फ ग्राउंड’ इस महल के थोड़े ही नीचे है | यहाँ से श्रीनगर की शान समझा जाने वाला संतूर होटल भी दिखाई देता है | हमने इस महल सीढ़ियों पर बैठकर काफी समय व्यतीत किया और फिर निकट ही चश्मशाही की तरफ रवाना हो गए |
       डल झील को अगर कश्मीर घाटी की जान माना जाता है तो सुन्दर मुग़ल गार्डेन पूरे कश्मीर की शान है | चश्म-ए-शाही उसी मुग़ल गार्डेन की श्रृंखला की एक शानदार कड़ी है | यह उद्यान श्रीनगर  8 कि.मी. की दूरी पर एक सुंदर पहाड़ी पर स्थित है | इस बाग़ का निर्माण मुग़ल बादशाह शाहजहाँ के गवर्नर अली मर्दान खां ने सन् 1632 ई. में कराया था | इस उद्यान की ऊँचाई शहर से बहुत ज्यादा है | पहली और दूसरी बार में क्रमश: 42 और 27 सीढ़ियाँ चढ़कर आखरी बार 7 और सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती है, तब कहीं चश्मे के पास पहुँचने का मौका मिलता है | बाग़ के बीचो बीच एक शुद्ध जल का चश्मा है, जिसका पानी गर्मी के दिनों में भी बर्फ की ताशीर वाला होता है, लेकिन इस पानी को अत्यंत सुपाचक भी माना जाता है | पूरा बैग मुख्यत: तीन भागों में बंटा हुआ है | हालाँकि चश्मे-शाही उद्यान यहाँ स्थापित सभी मुग़ल उद्यानों में सबसे छोटा है, लेकिन इसकी खूबसूरती बेमिसाल है | यह ऋतु में सुन्दर सुगंधित पुष्पों का सुंदर अजायब घर प्रतीत होता है | इसका चश्मा भी प्राकृतिक है | कहा जाता है कि अपने द्वारा स्थापित सभी उद्यानों में मुग़ल सम्राट शाहजहाँ इसी उद्यान को सबसे ज्यादा पसंद करता और तरजीह देता था | देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू भी इसको बहुत पसंद करते थे | बहुत ऊँची पहाड़ी पर स्थित होने की वजह से श्रीनगर का अलौकिक दृश्य यहाँ से बहुत स्पष्ट दिखाई पड़ता है | जम्मू-कश्मीर प्रांत के राज्यपाल का आवास भी इस उद्यान के बहुत निकट है | प्रांतीय सरकार ने इस उद्यान के एक भाग में एक ‘बोटेनिकल गार्डेन’ की स्थापना की है, जहाँ इस विषय के शोध के लिए बहुत बड़ा कार्य संपन्न होता है |
        हमारी अगली यात्रा निशात बाग़ की हुई | यह बाग़ महादेव पर्वत के ढलान पर श्रीनगर से 11 कि.मी. दूरी पर स्थित है | यहाँ जितने भी मुग़ल उद्यान है, उनमें इसका विस्तार सबसे अधिक है | इस बाग़ का निर्माण 1604 ई. में मुग़ल बादशाह जहाँगीर की बेगम नूरजहाँ के भाई आसफ खां ने कराया था | बाग़ के निर्माण के बाद जब बादशाह जहाँगीर ने इस बाग़ का अवलोकन और निरीक्षण किया तो उसके मुख से अकस्मात ‘वाह! वाह!’ फूट पड़ा था और उसने यह भी माना था कि यह उद्यान उसके द्वारा स्थापित शालीमार उद्यान से ज्यादा खूबसूरत है | यह बाग़ 10 चबूतरों में बंटा हुआ है | बाग़ के बीचोबीच एक सुंदर और साफ जल से भरपूर एक नहर बहती है, जिसमें कई फव्वारें लगे हुए हैं | पूरा बाग़ विभिन्न देशी-विदेशी फूलों की प्रजातियों और हर प्रकार के फलदार वृक्षों से भरा पड़ा है | चारों तरफ पहाड़ियों से घिरे होने के कारण इसकी प्राकृतिक शोभा अतुलनीय हो जाती है | बाग़ में प्रवेश के लिए कई सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती है | इसकी ऊँचाई से नसीम झील का दृश्य बहुत मनमोहक दिखाई देता है | इस उद्यान को देखने के बाद मुझे इस बात का अहसास हुआ कि बादशाह जहाँगीर यूँ ही नहीं निशात बाग़ की खूबसूरती पर फिदा हो गया था | अब हमें उद्यानों के क्रम में अंतिम उद्यान शालीमार बाग की सैर करनी थी | अत: हम उसी ओर अग्रसर हुए |
       शालीमार बाग़ श्रीनगर से लगभग 15 कि.मी. दूर है | यह मुख्य राजमार्ग  बुलवर्ड रोड पर स्थित है | बादशाह जहाँगीर ने सन् 1616 में इस बाग़ का निर्माण अपनी रूपसी पत्नी नूरजहाँ के लिए कराया था | यहाँ के सभी उद्यानों में यह सबसे बड़ा माना जाता है और उसमें बहुत से चबूतरे तथा बारहदरियाँ हैं | यह बाग़ चिनार के ऊँचे-ऊँचे वृक्षों से घिरा हुआ है, साथ ही इस बाग़ में अलग-अलग प्रकार के फलदार वृक्षों की बहुलता है | गर्मी के तीन-चार महीने बादशाह जहाँगीर अपनी बेगम नूरजहाँ के साथ इसी बाग़ में बिताया करते थे | बाग़ के भीतरी हिस्से में तामीर की गई इमारतें भी मुगलकालीन शिल्प कला का बेहतरीन नमूना प्रस्तुत करती है | बाग़ के बीचोबीच एक साफ-शफ्फाफ नहर बहती है, जिसमें बहुत सारे फव्वारे लगे हुए हैं | इस बाग़ के फूलों की खुशबू किसी को भी मदहोश बना सकती है | बाग़ के पिछले हिस्से में पर्वत श्रेणियों का प्रसार है और सामने से यह डल झील के अंतिम भाग से जुड़ा है | हमने इस बाग़ में फूलों की क्यारी के बीच कई तस्वीरें लीं और यहाँ के मालियों ने हमें कुछ ऐसे सुगंधित फूल दिये, जिनकी महक सूख जाने के लगभग एक महीने तक बनी रही | आज की यात्रा यहीं ख़त्म कर हम वापस नगीन झील के अपने हाउसबोट पर आ गये | यहाँ आकर भी हम चुप नहीं बैठे बल्कि शिकारे के जरिये हमने नगीन झील की सैर की |
      यह झील शहर से 8 कि.मी. की दूरी पर है | सड़क मार्ग से जाने पर यह सोनमर्ग मार्ग पर स्थित है | नौकायान और तैराकी की दृष्टि से पर्यटक इसे सर्वाधिक पसंद करते हैं | इसका गहरा नीला जल चाँदनी रातों में एक अद्भुत छवि प्रदर्शित करता है | हरिपर्वत पर स्थित किले की परछाई इस झील की सतह पर जब उभरती है, तब ऐसा लगता है कि कोई सुंदर जल-महल इस झील के भीतर आबाद है | इसका नाम नगीन इस कारण पड़ा है, क्योंकि इसे यहाँ के लोग इसे झीलों की अंगूठी का नगीना मानते हैं | झील में तैरते शिकारे में बैठे-बैठे हमने झील में तैरती संध्या की अरुणाभा के साथ ही रक्तवर्ण सूर्य के बिम्ब को भी नीले जल में तिरोहित होते देखा | संध्या के बाद जब शहर बल्बों की रोशनी में नहा उठा, तब इस झील में उभरती परछाइयों ने उसे एक अलौकिक शोभा का उपहार भेंट किया | हमें ऐसा लग ही नहीं रहा था कि हम धरती पर हैं, ऐसा महसूस हो रहा था कि एक स्वर्गिक स्वप्न लोक हमें किसी नई दुनिया से परिचित करा रहा है | इस झील को हरिपर्वत एवं शंकराचार्य पर्वत की श्रृंखलाओं ने अपनी विशाल भुजाओं में आबद्ध कर रखा है | शिकारे में बैठे-बैठे हमने दूर शंकराचार्य मंदिर के ज्योतिर्मय शिखर को झील के नीले जल में प्रतिबिंबित होते देखा | ऐसा लगा कि कोई सोने का मुकुट जल-धारा में फ़ेंक दिया गया हो | झील के किनारे-किनारे कमल और कुमुदनी के फूल यहाँ की ठंडी बयार को अपनी सुगंधियों से परितृप्त कर रहे थे | शिकारे वाले ने बताया कि यहाँ ‘फ्लोटिंग वेजीटेबल गार्डेन’ भी है, साथ ही एक कमल गार्डेन भी है, जहाँ कमल की खेती की जाती है | शिकारा कमल गार्डेन की ओर बढ़ चला | चूँकि रात हो चुकी थी, इस कारण कमल के फूल मुर्झा गये थे | हमने अनुमान लगाया कि प्रात: काल जब यह गार्डेन ताजा खिले फूलों से अपना दामन भर लेता होगा, तो नजारा कितना आनंददायक होता होगा ?
      बहुत देर तक नगीन झील में सैर करने के बाद हमारा शिकारा किनारे आ गया | रात भी गहराने लगी थी, अत: हमने भोजन लेकर विश्राम करना हो उचित समझा | दूसरे दिन हमने अपनी यात्रा की जो योजना बनाई उसमें प्राथमिक थी उस डल झील की सैर जिसे श्रीनगर का दिल कहा जाता है | यह झील सिर्फ कश्मीर ही नहीं पूरे भारत में सबसे बड़ी झील मानी जाती है | सच तो यह है कि यहाँ की अन्य झीलें भी इसी एक झील की शाखायें और सब कहीं न कहीं इस झील के साथ जुड़ती हैं | झील शहर के पूर्वाभाग में स्थित है | इसका पानी स्वच्छता और पारदर्शिता का एक मिसाल है | इसका विस्तार 8 कि. मी. लंबा तथा 4 कि.मी. चौड़ा है | पहले इसका प्रसार 28 वर्ग कि.मी. का था लेकिन अब यह सिर्फ 12 वर्ग कि.मी. तक सिमट कर रह गई है | झील के चारों तरफ पहाड़ों की श्रृंखलाओं का असीमित विस्तार है | जबरवान और महादेव पर्वत इसके बहुत निकट है | साल के बारहों महीने इन पहाड़ों की चोटियाँ बर्फ से ढकी रहती है | पहाड़ों की तलहटी में विस्तारित हरीतिमा और ऊँचे-ऊँचे वृक्षों की कतारें झील की शोभा को एक नये आयाम पर प्रसारित करती हैं | झील के बीच में एक छोटा सा द्वीप उभरा हुआ है, जिसे चार चिनार कहा जाता है | इस द्वीप को बड़े परिश्रम के साथ एक सुंदर उद्यान की शक्ल दे दी गई है | इस द्वीप को देखने के लिए पर्यटकों के शिकारे इसके किनारे हमेशा भीड़ लगाये रहते हैं | नेहरू पार्क भी इसी झील में है | हमने भी अपना शिकारा चार चिनार की तरफ मोड़ा | झील के बीच इस सरसब्ज जमीन को देखकर हमारा मन प्रफुल्लित हो गया और हमने यहाँ काफी समय व्यतीत किया | झील में किनारे-किनारे कमल और कुमुदनी के फूल खिले हुए थे, जिनकी हलकी-हलकी सुगंध प्रात: समीरण के साथ मिलकर प्राणों को नई उर्जा से सराबोर कर रही थी | झील के तैरते शिकारों की गिनती करना मुश्किल था और देशी-विदेशी पर्यटक सुंदर दृश्यावली को अपने०अपने कैमरों में कैद करने के प्रयास में संलग्न थी | बहुतों के हाथों में दूरबीनें भी थीं, जो दूरस्थ पहाड़ियों की शोभा को बहुत करीब देखकर आनंद मग्न हो रहे थे | एक आश्चर्यजनक बात यह देखने में आई कि यहाँ हाउसबोट पर बहुत से स्थानीय लोग भी डेरा डाले हुए थे | डल झील की एक विशेषता यह भी समझ में आई कि मुग़ल बादशाहों ने जितने बाग़-बगीचे यहाँ तामीर किये वे सब के सब इसी डल झील के किनारे स्थित है | हमारा यह भ्रमण प्रात: काल हो रहा था, लेकिन हमें बताया गया कि इस झील में सूर्यास्त देखना एक बहुत सुंदर अनुभव होता है | इसके अलावा चाँदनी रातों में तो इस झील का पानी पिघली हुई चाँदी तरह दिखाई देता है | डल झील की सैर के बाद इससे संलग्न दो अन्य झीलों, नसीम और अन्चार झील को भी देख लेना हमने उचित समझा |
       नसीम झील शहर से 10 कि.मी. दूर है | यह निशात बाग़ के ठीक सामने है | या श्रीनगर से सोनमर्ग जाने वाली सड़क के एक किनारे पर स्थित है | प्रसिद्ध हजरतबल मस्जिद भी इसी झील के किनारे है | एक छोटा सा द्वीप इस झील के भी मध्य भाग में है, जहाँ एक शानदार होटल बना दिया गया है | इस होटल तक पहुँचने का एक मात्र जरिया शिकारा ही है | यह झील भी आगे जाकर डल झील में मिल जाती है | श्रीनगर के सौआरा भाग के पास एक छोटी सी झील और है, जिसे अन्चार झील कहते हैं | लोगों ने अवैद्य कब्जे के साथ इस झील को लगभग पाट सा दिया है | इसके अलावा इसका पानी भी कुछ शहर के नालों से संबद्ध होने के कारण काफी प्रदूषित हो गया है | हमने इस झील को बहुत दूर से देखा और वापस चले आये | उस दिन हमने हाउसबोट पर विश्राम किया |

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