अमरनाथ
यात्रा - शंकराचार्य मंदिर
हम दूसरे दिन प्रात:काल उठकर शंकराचार्य
मंदिर के लिए निकले | यह प्रतिष्ठित स्थान श्रीनगर से 5 कि.मी. दूर है और इसकी समुद्रतल से
ऊँचाई 6240 फीट
की है | यह श्रीनगर से उत्तर-पूर्व दिशा में एक सुंदर पहाड़ी पर स्थित है | यहाँ
‘गोपादरी अथवा ‘गुपकार’ टीले को शंकराचार्य अथवा ‘तख़्त-ए-सुलेमान’ कहते हैं | कहा
जाता है कि शंकराचार्य के चौथे शंकराचार्य ने सन् 820 ई. में इस पहाड़ी पर तपस्या की थी, इस
कारण इस पहाड़ी का नाम उनके नाम से जुड़ गया | यूँ कई इतिहासकारों ने अपना दृष्टिकोण
प्रस्तुत करते हुए कहा है कि इसकी बुनियाद राजा अशोक के पुत्र ‘जन्नूक’ ने डाली थी
| इस मंदिर का निर्माण उस समय की शिल्पकला का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण है, क्योंकि
मंदिर का निर्माण डोरिक अर्थात अष्टकोणीय पद्धति से सुंदर और चिकने पत्थरों को
तराश कर गया गया है | वैसे इसकी मरम्मत समय-समय पर यहाँ के कई राजाओं ने कराई है |
इस मंदिर के मुख्य चबूतरों से न सिर्फ पीर-पंजाल की पर्वत श्रृंखलाओं के अलावा
पूरे श्रीनगर का विहंगम दृश्य दिखाई देता है | इसके अलावा जबरवान पहाड़ियाँ तथा
उसके नीचे डल झील तथा उत्तर में जेठनाग
और दक्षिण में झेलम नदी भी स्पष्ट दिखती है | मौजूदा समय में इस पहाड़ी पर बने
मंदिर के गर्भगृह में शिवजी विराजमान हैं | लगभग 300 से कुछ कम सीढ़ियाँ चढ़ने के बाद ही मंदिर
परिसर तक पहुँचना संभव हो जाता है | आदि शंकराचार्य की मूर्ति यहाँ दाहिनी तरफ एक
काँच के चैम्बर में स्थापित है | तत्पश्चात लगभग 47 सीढ़ियाँ और चढ़कर मंदिर तक पहुँचा जाता
है | एक अद्भुत बात यहाँ यह पता चली कि मंदिर में शिवलिंग की स्थापना यहाँ के एक
मुस्लिम शासक शेख मुहीउद्दीन ने की थी | वर्त्तमान में इस मंदिर को शंकराचार्य
मंदिर ही कहा जाता है और जिस पहाड़ी पर मंदिर स्थित है, उसे शंकराचाय पहाड़ी के नाम
से पुकारा जाता है | कहा यह भी जाता है कि वर्त्तमान मंदिर का आदेश पंजाब के रणजीत
सिंह ने अपने तत्कालीन राज्यपाल शेख मुहीउद्दीन को दिया था |इस मंदिर तक पहुँचने
के दो रास्ते हैं, एक दुर्गानाग की तरफ से और दूसरा नेहरू पार्क से | दुर्गानाग की
तरफ से यहाँ पहुँचने का मार्ग महाराजा गुलाब सिंह ने सन् 1925 ई. में बनवाया था | हम स्वयं मंदिर के
लिए नेहरू पार्क से सड़क मार्ग से पहुँचे थे | यहाँ के शिवलिंग का हमने विधिवत
दुग्धाभिषेक किया | हमने पूरे परिसर घूम कर इस स्थान की मनोहारी छवि तथा इसका
विधिवत अवलोकन किया | सन् 1974 ई.
में इस पहाड़ी पर टी.वी.टॉवर की भी स्थापना कर दी गई है और परिसर के एक बड़े भाग में
फौज ने अपना अस्थायी शिविर भी स्थापित कर लिया है | हमने यहाँ के बहुत सारे
दृश्यों को अपने कैमरे में कैद किया और आगे एक अन्य महत्त्वपूर्ण स्थान खीर भवानी
के मंदिर के दर्शनार्थ चल पड़े |
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