अमरनाथ यात्रा - शिवखोड़ी
सलाल बाँध परियोजना का अवलोकन करने के बाद हमने वहाँ के फौजी से
शिवखोड़ी तक पहुँचने के मार्ग के बाबत जानकारी चाही | एक फौज के आदमी ने बताया कि
पुल पार कर एक दूसरी पहाड़ी पर जाना होगा और वहाँ से तलवाड़ा होते हुए शिवखोड़ी जाया
जा सकता है | अत:
हम शिवखोड़ी के
दर्शनार्थ आगे बढ़ गये | तलवाडा से कुछ ही किलोमीटर आगे हम बढ़े
थे कि हमें रास्ता जाम मिला | सड़क पर पहाड़ की एक बहुत बड़ी चट्टान गिर पड़ी थी | वह
इतनी बड़ी थी कि उसे हटाना क्रेन से ही संभव था | लोग अपने-अपने वाहनों में बैठे
बेसब्री से क्रेन आने का इंतज़ार कर रहे थे | अंतत: हमारी प्रतीक्षा ने दम तोड़ दिया
और क्रेन नहीं आई | लेहाजा हमें फिर वापस सलाल बाँध आना पड़ा | हम वहाँ से
ज्योतिपुरम होते हुए फिर एक बार रियासी पहुँचे | हमें शिवखोड़ी पहुँचने की जल्दी इस
कारण भी थी कि रास्ता भयानक घने जंगलों से होकर गुजरता है, इस कारण शाम 6 बजे के बाद इस रास्ते
पर आवागमन प्रतिबंधित है | किसी तरह पौनी बराख होते हुए रेन्सू पहुँचे | रेन्सू एक
आधार शिविर है | छोटी-छोटी पहाड़ियों के बीच हरीतिमा की चादर ओढ़े हुए इसके अलौकिक
सौन्दर्य को शब्दों में ढाल पाना बहुत मुश्किल है | हरी-भरी घाटियों के साथ ही
इसकी वन्य शोभा सुदूर मैदानी क्षेत्रों तक जाती है | रेन्सू गाँव का ही एक भाग
शिवखोड़ी भी है | उधमपुर जिले के तहसील रियासी के पौनी ब्लॉक बहुत महत्त्वपूर्ण
मानी जाती है | जम्मू से 140 कि.मी. उत्तर और उधमपुर से 120 कि.मी. तथा कटरा से 80 कि.मी. दूर छोटी-छोटी
पहाड़ियों के बीच यह किसी सुन्दर सुरम्य उपवन सा दिखाई देता है | उधमपुर जिले में
कई विशिष्ट धार्मिक स्थल हैं, जैसे: माता वैष्णों देवी, सूद महादेव, पिंगला माता,
महामाया चौंत्रा माता, बाबा बंडा बहादूर अगर जित्तो, मरहबा माता, बाबा धनदर, सियाद
बाबा आदि, लेकिन शिवखोड़ी का महत्त्व तीर्थ यात्रियों के लिए विशेष है | शिवखोड़ी का
अर्थ “शिव की गुफा“
है | इस गुफा की
यात्रा यात्रीगण माता वैष्णों देवी की यात्रा जैसी आस्था के साथ ही करते हैं |
गुफा में स्थापित शिवलिंग अमरनाथ गुफा के बर्फानी शिवलिंग जैसा ही प्राकृतिक है |
महाशिवरात्रि के अवसर पर दूर-दूर से दर्शनार्थी यहाँ आते हैं | मान्यता है कि उस
दिन छत से शिवलिंग पर दूध टपकता है | इस गुफा की खोज लगभग 100 साल पूर्व गाँव के किसी चरवाहे ने की थी
| एक किलोमीटर इस गुफा में श्रृद्धालुओं को सिर्फ 150 मीटर तक ही जाने दिया जाता है | बताया
जाता है कि आगे आक्सीजन की कमी हो जाती है | यह भी कहा जाता है कि इस सीमा से आगे
बढ़ने वाला लौटकर वापस नहीं आया | यहाँ से शिवखोड़ी जाने का रास्ता कच्चा था | लोग
घोड़ा, बग्गी, खच्चरों की सवारी करते थे अथवा पैदल जाते थे | यह रास्ता भी लगभग 4 कि.मी. लंबा था और ऊपर से बरसात की
फुहारें | हम काफी थक गये थे इसलिए खच्चर का सहारा लेना ही ठीक समझा गया |
किसी-किसी तरह हम शिवखोड़ी पहुँच ही गये |
पवित्र
गुफा का प्रवेश द्वार शिवजी के डमरू जैसा है | गुफा कक्ष दो भागों में विभाजित हैं
| बाहरी कक्ष कुछ बड़ा है | गुफा के अन्दर प्रवेश करते ही हम एक हॉल में पहुँचे हॉल
की चौड़ाई 20 फीट, ऊँचाई 22 फीट और लंबाई लगभग 80 फीट है | प्रवेश करते ही एक विशालकाय
सर्पाकृति का दर्शन हुआ और अमरनाथ गुफा की तरह कबूतर भी देखने को मिले | आगे बढ़ने
पर चौड़ाई बहुत संकीर्ण मिली और भीतरी कक्ष बहुत छोटा मिला | गुफा में एक अकेला
व्यक्ति कठिनाई से प्रवेश पा सकता था | हम रस्सी की सहायता से नीचे झुककर छोटे
कक्ष में पहुँचे | ऐसी ही एक स्थिति का सामना मुझे सन् 1982 की वैष्णों देवी की यात्रा के दौरान
करना पड़ा था | साथ ही मुझे सन् 2005
में की गई मेघालय की गुफाओं की यात्रा का भी स्मरण हुआ | आश्चर्य जनक रूप से यहाँ
शिवलिंग पर छत से टपकता हुआ जल हमने देखा | गुफा के खुले भाग में स्थापित गर्भगृह चमत्कृत
कर देने वाली सुन्दरता का एक उदाहरण था | सफेद चूने की तरह कोई पदार्थ, जिसकी
धवलता दूध से मिलती-जुलती थी, लगातार टपकते रहने से 4 फीट ऊँचे प्राकृतिक शिवलिंग का
निर्माता बन गया | शिवलिंग प्राकृतिक संरचना का एक रहस्य था, जिसे वैज्ञानिक जगत
आज भी उद्घाटित नहीं कर पाया | शिवलिंग के ऊपर एक गाय जैसी आकृति थी, जिसके थन से
शिवलिंग पर अनवरत जल टपक रहा था | ऐसा लगता था कि जैसे प्रकृति माता कामधेनु के
रूप में शिवजी का जलाभिषेक कर रही हैं | शिवलिंग के वाम भाग में माता पार्वती
विराजमान थी और उनकी बायीं तरफ शिवपुत्र कार्तिकेय की प्रतिकृति विराजमान थी |
माता गौरी के साथ एक छोटे कुण्ड के रूप में गौरीकुण्ड की भी अद्भुत शोभा यहाँ
देखने को मिलती है | स्वामी कार्तिकेय के उपरी हिस्से में पंचानन गणेश लगभग 2 फीट 6 इंच की ऊँचाई पर विराजमान है | शिवलिंग
के दक्षिण भाग में राम-दरवार है, जहाँ राम-लक्ष्मण-सीता के साथ हनुमान जी भी
प्रतिष्ठित हैं | पूरी गुफा विभिन्न देवी-देवताओं का आगार (घर) समझ में आती है |
गुफा की छत सर्पाकार आकृति की है | त्रिशूल,ॐ और छ: मुंह वाले शेषनाग गुफा की छत
पर विराजमान थे, जिनके माध्यम से गुफा में जल टपकता रहता है | छत के मुख्य भाग में
गोलाकार विष्णु-चक्र भी विराजमान है |
दूसरे
आधे हिस्से के मुख्य कक्ष में महाकाली और महासरस्वती की प्रतिमाएँ हैं | महाकाली
का ठीकरा सदैव पवित्र जल से आपूरित रहता है | श्रद्धालुजन इसका आचमन भी करते हैं
और पवित्र जल से स्वयं का शुद्धिकरण भी करते हैं | महाकाली की प्रतिमा से ऊपर
प्राकृतिक चट्टानों को तराश कर पिण्ड रूप में पाँच पाण्डवों की प्रतिकृति को उकेरा
गया है | गुफा की एक अन्य दीवार पर ऐसा ही एक चित्र उकेरा गया दिखाई देता है
जिसमें भगवान शिव की छाती पर महाकाली अपने रौद्र रूप में लास्य (नृत्य) करती हुई
दिखाई देती है | हमने दर्शन किया और प्रसाद लेकर गुफा के बाहर आ गये | हमें बताया
गया कि कटरा जाने का रास्ता 6
बजे बंद कर दिया जाएगा, अत: हमने शीघ्रातिशीघ्र प्रस्थान करना ही उचित
समझा |
वापस लौटते हुए एक बार फिर इस प्राकृतिक सुषमा को परिष्कृत करते उन्हीं
दृश्यों से दो-चार हो रहे थे, जो जाते समय आँखों को परितृप्त कर चुके थे | अन्तर
इतना ही था कि लौटते समय सायंकाल का धुंधलका पूरे परिवेश पर अपनी धुंधली चादर
बिछाने लगा था | यहाँ से दूरस्थ त्रिकूट पर्वत किसी विशालकाय हाथी के मस्तक सा
दिखाई दे रहा था | बल्वों की रोशनी में नहाया यह पर्वत एक अलौकिक दृश्य प्रस्तुत
कर रहा था और लगता था कि गजराज ने रत्नजड़ीत मुकुट अपने माथे पर धारण कर लिया है |
कटरा पहुँचते-पहुँचते काफी रात हो चुकी थी और हमारा पूरा शरीर थकान से श्लथ हो
चूका था | एक होटल में हमने भोजन करने के बाद विश्राम किया | सुबह हम फिर एक बार
जम्मू पहुँचे, लेकिन इस बार हमारा लक्ष्य जम्मू नहीं अपितु श्रीनगर और कश्मीर घाटी
थी | हमने हवाई जहाज की शरण ली और सिर्फ आधे घंटे में जम्मू से श्रीनगर पहुँच गये
|
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