अमरनाथ यात्रा –
बालटाल
सोनमर्ग
से बालटाल लगभग 15 कि.मी. दूर है । अमरनाथ यात्रा के समय
यहां अस्थाई तौर पर तंबू लगाकर यात्रियों का आवास बना दिया जाता है । हम जब इस
स्थान पर पहुंचे तो चमत्कृत रह गये, क्योंकि हमने इसके पहले इतना बड़ा तंबुओं का नगर कभी नहीं देखा था।
यहां सरकार की ओर से भी और बहुत ही सामाजिक-धार्मिक संस्थाओं की ओर से भी
यात्रियों को यथा संभव हर तरह की सुविधा प्रदान की जाती है। बड़े-बड़े शिविरों में
धार्मिक संस्थाएं यात्रियों के लिए भंडारा चला रही थी। इस तरह कई शिविरों में
चिकित्सक बीमार पड़ रहे अस्वस्थ यात्रियों का दवा-इलाज कर रहे थे। बालटाल पर्वतीय
श्रृंखला के बीच एक सुंदर स्थान अवश्य है, लेकिन यहां कोई आबादी नहीं है। यहां सिर्फ उस समय गुलजार होता है, जब अमरनाथ की यात्रा शुरू
होती है। तब अस्थायी तौर पर तंबू लगाकर यात्रियों को यहां विश्राम, भोजन और चिकित्सा की
सुविधा दी जाती है। इसकी एक विशेषता यह भी है कि यह चारों तरफ से घने जंगलों से
घिरा हुआ है। यात्रा के दिनों में कुछ जरुरी सामानों की दुकानें भी यहां लग जाती
है। बालटाल से पवित्र गुफा के लिए जाने के लिए एकमात्र रास्ता पैदल अथवा घोड़े की
सवारी का है। संपन्न लोग यहां से हेलीकॉप्टर के जरिए भी यात्रा करते हैं, लेकिन ऐसा तब होता है जब
मौसम साफ हो। मेरा टिकट हेलीकॉप्टर से उड़ान भरने का बहुत पहले ही बुक हो चुका था।
मैं अपने बेटे राजेश का टिकट लेने के लिए परिशान थी। एक फौजी से पता करने पर मालूम
हुआ कि कल खराब मौसम के चलते हेलीकॉप्टर नहीं उड़ेंगे। कल ही छड़ी मुबारक ही आने
को थी। मतलब यह कि कल का दिन भगवान अमरनाथ के दर्शन का अंतिम दिन होगा। मेरे मन
में निराशा पैठ गई और मैं बहुत अधिक भाव से बर्फानी बाबा को पुकारने लगी कि वे
अपने द्वार से इस तरह ना लौटावें। इसे दैवी कृपा ही कहा जाएगा कि राजेश अपना टिकट
भी ले आया और यह समाचार भी कि हेलीकॉप्टर अवश्य उड़ेगा। मैंने बर्फानी बाबा को मन
ही मन धन्यवाद दिया और मैं इतनी गदगद तथा आह्लादित हुई की मेरे नेत्रों से अविरल
अश्रुधारा बहने लगी।
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