गतांक से आगे
इण्डिया गेट
इण्डिया गेट राजपथ के अंतिम छोर पर एक 42 मीटर ऊँची भव्य इमारत
है | इसकी नींव सन् 1921 में ड्यूक ऑफ कनॉट (अंग्रेज) ने
विजय-स्तंभ के रूप में रखी थी | यह स्मारक सन् 1931 में बनकर तैयार हो गया था | इसे मूल रूप
में ‘ऑल इण्डिया वॉर मेमोरियल’ या ‘अखिल भारतीय युद्ध स्मारक’ भी कहा जाता है |
प्रथम विश्व युद्ध और तीसरे एंग्लो अफगान युद्ध में अंग्रेज सेना के पक्ष में लड़ते
हुए 90000 भारतीय जवानों ने
अपने प्राणों की आहुति दी थी, उन सबके नाम इस विजय-स्तंभ पर उल्लिखित है | ब्रिटिश
साम्राज्य ने अपने समय के विश्व-विख्यात
वास्तु-शास्त्री ‘एड्विन लैंडसियर लूट्यन्स’ से इसका नक्शा बनवाकर इसे भव्य रूप
दिया था | यह साम्राज्य की प्रथम विश्व-युद्ध से मिली विजय का प्रतीक-चिह्न भी
माना जाता है |
यह स्मारक लाल और
पीले रंग का है | यह ग्रेनाईट बलुए पत्थर का बना हुआ है और मूल रूप से जार्ज पंचम
के साम्राज्य के भारतीय प्रतिक रूप में बनाया गया है | यह स्मारक 10 सालों बाद वायसरॉय लॉर्ड इरविन के जरिये राष्ट्र को समर्पित किया गया
| इसके सामने एक छतरी मौजूद है, जहाँ जार्ज पंचम की कभी मूर्ति हुआ कर ती थी, आजकल
वह खाली है | इण्डिया गेट राष्टपति भवन के सामने खड़ा एक भव्य द्वार है, जिसकी
ऊँचाई और मजबूत ढांचा बरबस सैलानियों को आकर्षित करता है | यह दुनिया के कुछ सबसे
खूबसूरत व विशाल राष्ट्राध्यक्षों के निवास स्थलों में से एक राष्ट्रपति भवन के
सामने राजपथ पर स्थित है | राष्ट्रपति का आवास इण्डिया गेट के ठीक सामने लगभग 1
किलोमीटर की सीधी दूरी में है | अंग्रेजों के जमाने में इसे किंग्सवे
कहते थे | इस राजपथ के बाद दूसरी महत्वपूर्ण सड़क है, जनपथ | 26 जनवरी यानी गणतंत्र-दिवस के अवसर पर इसी राजपथ पर सेना के तीनों अंगों
की परेड भी होती है और देश के सभी प्रदेशों की झांकियां भी प्रदर्शित की जाती है |
राष्ट्रपति यहाँ से गुजरने वाली सैन्य टुकड़ियों की सलामी स्वीकार करते हैं | यह
परेड राष्ट्रपति भवन से शुरू होकर इण्डिया गेट से होते हुए लालकिले तक जाती है |
इण्डिया गेट पर एक वृतखंड के नीचे ‘अमर जवान ज्योति’ भी है जो अहर्निश अखंड जलती
रहती है | शुरू में यहाँ अमर ज्योति नहीं थी | यह बाद के सालों में जुड़ी, जब भारत
को आजादी मिली | इस ज्योति का आशय देश के उन अज्ञात सपूतों को अपनी मौन-मुख
श्रद्धांजलि अर्पित करना है, जिन्होंने नि:स्वार्थ देश-रक्षा में अपने प्राणों की
आत्माहुति दी है | भारत पाकिस्तान के बीच हुए 1971 के
युद्ध में शहीद होने वाले सैनिकों को भी यहाँ श्रद्धांजलि दी गई है |
इण्डिया गेट यूँ तो
दिल्ली का प्रतीक है, लेकिन अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य में यह समूचे भारत का प्रतीक
है | ऐसे प्रतीकों में सहज आगरा का ‘ताजमहल,’ मुंबई का ‘द गेटवे ऑफ इण्डिया’ और
हैदराबाद का ‘चारमीनार’ है | इण्डिया गेट जितना विशाल और भव्य है, इसके चारों तरफ
उतना ही हरा-भरा और खूबसूरत वोट क्लब पार्क स्थित है | इसी पार्क के बीचोबीच यह
गेट मौजूद है | इसके आस-पास 3 लाख वर्ग मीटर का
मैदान है | कहते हैं कि इण्डिया गेट जिस पत्थर से बना है, वह पत्थर भरतपुर से लाये
गए थे | यह विशालकाय स्मारक पत्थर के एक संकरे घेरे की नींव पर खड़ा है और बिल्कुल
दरवाजे की तरह ऊपर को उठा है | इस राष्ट्रीय स्मारक का अवलोकन करते हुए मुझे पल
में ही पेरिस के ‘आर्क डी. ट्रिम्फ’ की याद आ गई, जिसका मैंने अपनी 2004 की यू. के. यात्रा में अवलोकन किया था | यहाँ पूरे दिन भीड़ लगी रहती
है, लेकिन रात में बल्वों की रोशनी में इसकी छटा ही कुछ ओर है | इण्डिया गेट से
हमारा काफिला आगे बढ़ा और हम सफदरजंग का मकबरा देखने गये |
क्रमश:
संपत देवी मुरारका
लेखिका यात्रा विवरण
मीडिया प्रभारी
हैदराबाद
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