Thursday, 24 July 2014

लोटस टेम्पल/कमल मंदिर-यात्रा दिल्ली की

गतांक से आगे 


लोटस टेम्पल/कमल मंदिर-यात्रा दिल्ली की

आगे हम कालिका पहाड़ी पर नेहरू प्लेस के पास स्थित लोटस टेम्पल या कमल मंदिर देखने गए | इसे बहाई उपासना स्थल या बहाई टेम्पल भी कहा जाता है, कारण इसे बहाई संप्रदाय के लोगों ने 24 दिसंबर 1986 में तैयार करवाया था, लेकिन आम जनता के लिए यह मंदिर 1 जनवरी 1987 को खोला गया | यह अपने आप में एक अनूठा मंदिर है | यहाँ पर न कोई मूर्ति है और न ही किसी प्रकार का कोई धार्मिक कर्म-काण्ड किया जाता है | बहाई उपासना मंदिर उन मंदिरों में से एक है, जो गौरव, शान्ति एवं उत्कृष्ट वातावरण को ज्योतिर्मय करता है, जो किसी भी श्रद्धालु को आध्यात्मिक रूप से प्रोत्साहित करने के लिए अति आवश्यक है । मंदिर में प्रवेश के लिए किसी प्रकार का शुल्क नहीं लिया जाता | इस मंदिर में ध्यान की कई विधियों के साथ लोगों से प्रार्थना और ध्यान कराया जाता है | यहाँ का शांत वातावरण प्रार्थना और ध्यान के लिए सहायक है । भारत के लोगों के लिए कमल का फूल पवित्रता तथा शान्ति का प्रतीक होने के साथ ईश्वर के अवतार का संकेत चिह्न भी है | यह फूल कीचड़ में खिलने के बावजूद पवित्र तथा स्वच्छ रहना सिखाता है, साथ ही यह इस बात का भी द्योतक है कि कैसे धार्मिक प्रतिस्पर्धा तथा भौतिक पूर्वाग्रहों के अंदर रह कर भी, कोई व्यक्ति इन सबसे अनासक्त हो सकता है ।

मंदिर स्थापत्य वास्तुकार फरीबर्ज सहबा ने तैयार किया है | कहते हैं कि इस मंदिर के साथ विश्वभर में कुल सात बहाई मंदिर हैं | जल्द ही आठवाँ मंदिर भी बनने वाला है। भारतीय उपमहाद्वीप में भारत के कमल मंदिर के अलावा छह मंदिर एपिया-पश्चिमी समोआ, सिडनी-आस्ट्रेलिया, कंपाला-यूगांडा, पनामा सिटी-पनामा, फ्रैंकफर्ट-जर्मनी और विलमॉट-संयुक्त राज्य अमेरिका में भी हैं। मंदिर बहुत बड़ा है और आधुनिक शिल्पकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है | इस मंदिर के नौ द्वार और नौ कोने हैं | यह उपासना मंदिर चारों ओर से नौ बड़े जलाशयों से घिरा है, जो न सिर्फ भवन की सुन्दरता को बढाते हैं, बल्कि मंदिर के प्रार्थनागार को प्राकृतिक रूप से ठंडा रखने में भी महत्त्वपूर्ण योगदान देते है |  उपासना मंदिर मीडिया प्रचार प्रसार और श्रव्य माध्यमों में आगंतुकों को सूचनाएँ प्रदान करता है | माना जाता है कि नौ सबसे बड़ा अंक है और यह विस्तार, एकता एवं अखंडता को दर्शाता है | मंदिर की निर्मिति एक अष्टदल कमल के रूप में की गई है, इस कारण इसे ‘लोटस टेंपल’ कहा जता है | इसकी सबसे बड़ी खूबी यह है कि इसे कमल की आकृति में ढालते हुए किसी स्तंभ का सहारा नहीं लिया गया है, साथ ही पूरे मंदिर का निर्माण सुन्दर संगमरमर से किया गया है | अपनी इस विशिष्ट शैली के चलते इस मंदिर में पर्यटकों की भीड़ लगी रहती है | मंदिर में पर्यटकों को आर्किषत करने के लिए विस्तृत घास के मैदान,  सफेद विशाल भवन, ऊंचे गुंबद वाला प्रार्थनागार और प्रतिमाओं के बिना मंदिर से आकर्षित होकर हजारों लोग यहाँ मात्र दर्शक की भांति नहीं बल्कि प्रार्थना एवं ध्यान करने तथा निर्धारित समय पर होने वाली प्रार्थना सभा में भाग लेने भी आते हैं। यह विशेष प्रार्थना हर घंटे पर पांच मिनट के लिए आयोजित की जाती है । संध्याकाल में जब सूर्य की किरणें इस मंदिर को आलोकित करती है, तब इसका अभिराम दृश्य अत्यंत मनमोहक दिखाई देता है | सुबह और शाम की लालिमा में सफेद रंग की यह संगमरमरी इमारत अद्भुत लगती है । कमल की पंखुड़ियों की तरह खड़ी इमारत के चारों तरफ लगी दूब और हरियाली इसे कोलाहल भरे इलाके में शांति और ताजगी देने वाला बनाती हैं । इस मंदिर का अवलोकन करने के बाद हम एक विश्वप्रसिद्ध इमारत क़ुतुबमीनार देखने गए |
क्रमश:
संपत देवी मुराराका
लेखिका यात्रा विवरण
मीडिया प्रभारी
हैदराबाद

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