Thursday, 24 July 2014

क़ुतुबमीनार-यात्रा दिल्ली की

 गतांक से आगे  









क़ुतुबमीनार-यात्रा दिल्ली की

क़ुतुब मीनार दिल्ली के दक्षिणी इलाके के महरौली भाग में स्थित, ईंट से बनी विश्व की सबसे ऊँची अट्टालिका (मीनार) है और इसे वास्तुकला की अफगान शैली का अनयतम उदाहरण माना जाता है | मूल रूप से भारत की सबसे ऊँची मीनार एक प्राचीन इस्लामी स्मारक है | यह वास्तव में एक इस्लामिक विजय स्तंभ है | भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग के अनुसार इसके निर्माण पूर्व यहाँ सुन्दर 20 जैन मंदिर थे | उन्हें ध्वस्त करके उसकी सामग्री से वर्त्तमान इमारतें बनी |

कुतुब मीनार पुरातन दिल्ली शहर, ढिल्लिका के प्राचीन किले लालकोट के अवशेषों पर बनी है। ढिल्लिका अन्तिम हिन्दू राजाओं तोमर और चौहान की राजधानी थी । अफगानिस्तान में स्थित ‘जाम की मीनार’ से प्रेरित एवं उससे आगे निकलने की इच्छा, दिल्ली के प्रथम मुसलिम (गुलाम वंश के) शासक कुतुबुद्दीन ऐबक ने इसका निर्माण सन् 1192 में आरंभ करवाया था, परन्तु केवल इसका आधार ही बनवा पाया | उसके बाद उसी वंश के उत्तराधिकारी इल्तुतमिश ने इसमें तीन मंजिलों को बढ़ाया और सन्   1368 में फिरोजशाह तुगलक ने पांचवी और अंतिम मंजिल बनवाई | कहा जाता है कि फिरोजशाह तुगलक और अलेकजेंडर कनिंघम ने इसके ऊपर एक मंजिल और बनवाने का प्रयास किया था, लेकिन वे असफल रहे | मुसलिम शासन-काल में काजी इसी मीनार से अजान की घोषणा करता था | कुछ इतिहासकारों का विश्वास है कि इसका नाम प्रथम तुर्की सुलतान कुतुबुद्दीन ऐबक के नाम पर पड़ा, वहीं कुछ यह मानते हैं कि इसका नाम बगदाद के प्रसिद्ध संत कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी के नाम पर है, जो भारत में वास करने आये थे | इल्तुतमिश उनका बहुत आदर करते थे, इसलिए क़ुतुब मीनार को यह नाम दिया गया | क़ुतुब मीनार के विभीन्न वर्गों, पारसो अरबी और नागरी अक्षरों में कई शिलालेख हैं, जिससे इसके निर्माण के इतिहास का पता चलता है | शिलालेख के अनुसार, इसकी मरम्मत तो फिरोजशाह तुगलक ने (1351-88) और सिकंदर लोदी ने (1489-1517) करवाई | मेजर आर.स्मिथ ने इसका जीर्णोद्धार 1829 में करवाया था | मीनार पहले सात मंजिला थीं |
        
मीनार कई बार भूकंप और बिजली हमलों से क्षतिग्रस्त हो गई थी, लेकिन विभिन्न शासको द्वारा मरम्मत और पुनर्निर्माण किया गया था | फिरोजशाह तुगलक के शासन के दौरान, मीनार की उपरी दो मंजिलें बिजली गिरने से क्षतिग्रस्त हो गई थी, फिरोजशाह द्वारा मरम्मत कर दी गई थी | सन्  1505 में दुबारा भूकंप से मीनार फिर से क्षतिग्रस्त हो गई थी | इसकी मरम्मत सिकंदर लोदी ने करवाई | तत्पश्चात सन् 1794 में, मीनार को एक और भूकंप का सामना करना पड़ा और इस मीनार के प्रभावित हिस्से की मरम्मत मेजर स्मिथ ने की, जो एक इंजीनियर था | उसने मीनार के शीर्ष पर फिरोजशाह के मंजिल के साथ अपनी बनाई मंजिल भी प्रतिस्थापित कर दी | बाद में इस मंजिल को लार्ड हार्डिंग ने सन् 1848 में हटा दिया था, जो वर्त्तमान में बगीचे में डाक-बंगला और मीनार के बीच स्थापित है | फिरोजशाह द्वारा निर्मित यह मंजिल आसानी से प्रतिष्ठित की जा सकती है | मंजिल सफेद संगमरमर से निर्मित की गई है और दूसरों की तुलना में काफी चिकनी है |
        
सन्  1981 से पूर्व, शीर्ष सात मंजिल तक संकीर्ण सीढियों द्वारा आम जनता इस मीनार पर चढ़ सकती थी | मुझे भी दिसंबर 1968 में पति के साथ शीर्ष तक जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था | 4 दिसंबर 1981 को एक दुर्घटना हुई, मीनार की विजली अचानक चली गई | इसकी सीढियों में अँधेरा छा जाने से भगदड़ मच गई, जिससे लगभग 45 लोगों की जानें चली गई | पीड़ितों में अधिकाँश बच्चे थे | क्योंकि सन्  1981 से पूर्व स्कूली बच्चों को ऐतिहासिक स्मारकों को देखने के लिए प्रति शुक्रवार को नि:शुल्क प्रवेश की अनुमति दी गई थी और कई स्कूल समूहों को इसका लाभ प्राप्त हो रहा था | बाद में सार्वजनिक उपयोग वर्जित कर दिया गया है |

मीनार पांच मंजिला है, लेकिन हर मंजिल पर आकार-प्रकार और स्थापत्य दुसरे से भिन्नता लिए हुए है | प्रथम तीन मंजिलों में लाल बलुआ पत्थरों पर कुरान की आयतों की एवं फूल बेलों की महीन नक्काशी करके बनाई गई है | बाकी दो मंजिलों में इन पत्थरों के अलावा संगमरमर का भी इस्तेमाल हुआ है | यह मीनार 72.5 मीटर (237.86 फीट) ऊँची है और इसका व्यास 14.3 मीटर है, जो ऊपर जाकर शिखर पर  2.75 मीटर (9.02 फीट) हो जाता है | इसमें 379 सीढियां हैं | यह कई अन्य प्राचीन और मध्ययुगीन संरचनाओं और खंडहरों से घिरा हुआ है और इसके अलावा कुछ अन्य दर्शनीय स्थल हैं, जिनमे जैन दिगंबर मंदिर, जैन दादावाड़ी तथा बलवन का मकबरा शामिल है | सामूहिक रूप से क़ुतुब परिसर के रूप में जाना जाता है | मीनार के चारों ओर बने अहाते में भारतीय कला के कई उत्कृष्ट नमूने हैं, जिनमे से अनेक इसके निर्माण-काल सन् 1193 या पूर्व के हैं | यह परिसर यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर के रूप में स्वीकृत किया गया है | क़ुतुब परिसर में स्थापित मस्जिद देखने गए |
क्रमश:
संपत देवी मुराराका
लेखिका यात्रा विवरण
मीडिया प्रभारी
हैदराबाद

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