Thursday, 24 July 2014

जंतर-मंतर-यात्रा दिल्ली की

गतांक से आगे 



जंतर-मंतर-यात्रा दिल्ली की

अप्पूघर और प्रगति मैदान का अवलोकन समाप्त करने के बाद हमारे काफिले ने जंतर-मंतर की ओर रुख किया | यह स्थान कोलाहल भरे कनॉट प्लेस से सटा हुआ है | इसका निर्माण लाल बलुआ पत्थरों से किया गया है | जंतर-मंतर देश की प्रमुख चार वेद्यशालाओं में एक है | वेद्यशाला की दृष्टि से इसे विश्व-स्तर की एक अनोखी संरचना स्वीकार किया जाता है | इसकी संरचना में भारतीय खगोल विद्या की झलक मिलती है | इस वेद्यशाला का निर्माण जयपुर के राजपूत राजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने सन् 1724 में कराया था | निश्चित रूप से उनका उद्देश्य ज्योतिष की भारतीय परंपरा में शोध तथा उसके संवर्धन का था | यहाँ वैश्विक स्तर के खगोल-शास्त्री भारतीय ज्योतिष का अध्ययन करने हमेशा आते रहते हैं | एक विलक्षणता यह है कि यहाँ निर्मित स्तंभों की परछाई की गणना कर आकाश में ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति का पता लगाया जाता है | सवाई राजा जयसिंह द्वितीय की उत्सुकता ज्योतिष के अध्ययन और उसके उन्नयन में सर्वाधिक गंभीर थी, जिसके चलते उन्होंने दिल्ली के इस जंतर-मंतर के तर्ज पर जयपुर, बनारस, मथुरा और उज्जैन में भी ऐसे ही वेद्यशालाओं का निर्माण करवाया था | आगे इस स्थान के बगल में ही नई दिल्ली की शान समझे जाने वाले कनॉट प्लेस की ओर हम बढ़े |
क्रमश:
संपत देवी मुराराका
लेखिका यात्रा विवरण
मीडिया प्रभारी
हैदराबाद 

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